मुझको जीना है-कविता -स्वागता बसु -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Swagata Basu
व्यथा विष के हलाहल को
मान कर मदिरा पीना है।
जब तक आस की किरण रहेगी
तब तक मुझको जीना है।।
अभी तो हमने पर खोल है
यही तो उड़ना बाक़ी है
अभी तो दूर नभ के आंगन से
जाकर जुड़ना बाकी है
अभी तो विपदा के घावों को
अपनी हिम्मत से सीना है
जब तक पीर की बदली होगी
तब तक मुझको जीना होगा
अभी तो हमको संबंधों की
परिभाषाएँ गढ़नी है
हर विवश आंखों में हमको
नई आशाएँ गढ़नी है
आँसू के हलाहल की भी हमको
साथ तुम्हारे पीना है
जब तक तुम्हारा हृदय व्यथित है
तब तक हमको जीना है।।
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