मिलन यामिनी -हरिवंशराय बच्चन -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita By Harivansh Rai Bachchan Part 6
उत्तर भाग 2
समेट ली किरण कठिन दिनेश ने
समेट ली किरण कठिन दिनेश ने,
सभा बादल दिया तिमिर-प्रवेश ने,
सिंगार कर लिया गगन प्रदेश ने;
—नटी निशीथ
का पुलक
उठा हिया!
समीर कह चला कि प्यार का प्रहरे,
मिली भुजा-भुजा, मिले अधर-अधर,
प्रणय प्रसून गया सेज पर गया बिखर;
निशा सभीत
ने कहा कि
क्या किया!
अशंक शुक्र पूर्व में उवा हुआ,
क्षितिज अरुण प्रकाश से छुआ हुआ,
समीर है कि सृष्टिकार की दुआ;
निशा बिनीत
ने कहा कि
शुक्रिया!
समीर स्नेह-रागिनी सुना गया
समीर स्नेह-रागिनी सुना गया,
तड़ाग में उफान-सा उठा गया,
तरंग में तरंग लीन हो गई;
झुकी निशा,
झँपी दिशा,
झुके नयन!
बयार सो गई अडोल डाल पर,
शिथिल हुआ सुनिल ताल पर,
प्रकृति सुरम्य स्वप्न बीच खो गई;
गई कसक,
गिरी पलक,
मुँदे नयन!
विहंग प्रात गीत गा उठा अभय,
उड़ा अलक चला ललक पवन मलय,
सुहाग नेत्र चुमने चला प्रणय;
खुला गगन,
खिले सुमन,
खुले नयन!
पुकारता पपीहरा पि…या, पि…या
पुकारता पपीहरा पि…या, पि…या,
प्रतिध्वनित निनाद से हिया-हिया;
हरेक प्यार की पुकार में असर,
कहाँ उठी,
कहाँ सुनी गई
मगर!
घटा अखंड आसमान में घिरी,
लगी हुई अखंड भूमि पर झरी,
नहा रहा पपीहरा सिहर-सिहर;
अधर—सुधा
निमग्न हो रहे
अधर!
सुनील मेघहीन हो गया गगन,
बसुंधरा पड़ी हरित बसन,
पपीहरा लगा रहा वह रटन;
प्रणय तृषा
अतृप्त सर्वदा
अमर!
सुना कि एक स्वर्ग शोधता रहा
सुना कि एक स्वर्ग शोधता रहा,
सुना कि एक स्वप्न खोजता रहा,
सुना कि एक लोक भोगता रहा,
मुझे हरेक
शक्ति का
प्रमाण है!
सुना कि सत्या से न भक्ति हो सकी,
सुना कि स्वप्न से न मुक्ति हो सकी,
सुना कि भोग से न तृप्ति हो सकी,
विफल मनुष्य
सब तरफ़
समान है!
विराग मग्न हो कि राग रत रहे,
विलीन कल्पना कि सत्य में दहे,
धुरीण पुण्य का कि पाप में बहे,
मुझे मनुष्य
सब जगह
महान है!
उसे न विश्व की विभूतियाँ दिखीं
उसे न विश्व की विभूतियाँ दिखीं,
उसे मनुष्य की न खूबियाँ दिखीं,
मिलीं हृदय-रहस्य की न झाँकियाँ,
सका न खेल
जो कि प्राण
का जुआ!
सजीव है गगन किरण-पुलक भरा,
सजीव गंध से बसी वसुंधरा,
पवन अभय लिए प्रणय कहानियाँ,
डरा-मरा
न स्नेह ने
जिसे छुआ!
गगन घृणित अगर न गीत गूंजता,
अवनि घृणित अगर न फूल फूलता,
हृदय घृणित अगर न स्वप्न झूलता,
जहाँ वहा
न रस वहीं
नरक हुआ!