मानव की आँख- शरणार्थी अज्ञेय- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय”-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Sachchidananda Hirananda Vatsyayan Agyeya,
कोटरों से गिलगिली घृणा यह झाँकती है।
मान लेते यह किसी शीत रक्त, जड़-दृष्टि
जल-तलवासी तेंदुए के विष नेत्र हैं
और तमजात सब जन्तुओं से
मानव का वैर है क्यों कि वह सुत है
प्रकाश का-यदि इन में न होता यह स्थिर तप्त स्पन्दन तो!
मानव से मानव की मिलती है आँख पर
कोटरों से गिलगिली घृणा झाँक देती है!
इलाहाबाद स्टेशन, 12 अक्टूबर, 1947