मलु जूई भरिआ नीला काला खिधोलड़ा-श्लोक -गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji
मलु जूई भरिआ नीला काला खिधोलड़ा तिनि वेमुखि वेमुखै नो पाइआ ॥
पासि न देई कोई बहणि जगत महि गूह पड़ि सगवी मलु लाइ मनमुखु आइआ ॥
पराई जो निंदा चुगली नो वेमुखु करि कै भेजिआ ओथै भी मुहु काला दुहा वेमुखा दा कराइआ ॥
तड़ सुणिआ सभतु जगत विचि भाई वेमुखु सणै नफरै पउली पउदी फावा होइ कै उठि घरि आइआ ॥
अगै संगती कुड़मी वेमुखु रलणा न मिलै ता वहुटी भतीजीं फिरि आणि घरि पाइआ ॥
हलतु पलतु दोवै गए नित भुखा कूके तिहाइआ ॥
धनु धनु सुआमी करता पुरखु है जिनि निआउ सचु बहि आपि कराइआ ॥
जो निंदा करे सतिगुर पूरे की सो साचै मारि पचाइआ ॥
एहु अखरु तिनि आखिआ जिनि जगतु सभु उपाइआ ॥1॥306॥