मरणै की चिंता नही जीवण की नही आस-शब्द -गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji
मरणै की चिंता नही जीवण की नही आस ॥
तू सरब जीआ प्रतिपालही लेखै सास गिरास ॥
अंतरि गुरमुखि तू वसहि जिउ भावै तिउ निरजासि ॥१॥
जीअरे राम जपत मनु मानु ॥
अंतरि लागी जलि बुझी पाइआ गुरमुखि गिआनु ॥१॥ रहाउ ॥
अंतर की गति जाणीऐ गुर मिलीऐ संक उतारि ॥
मुइआ जितु घरि जाईऐ तितु जीवदिआ मरु मारि ॥
अनहद सबदि सुहावणे पाईऐ गुर वीचारि ॥२॥
अनहद बाणी पाईऐ तह हउमै होइ बिनासु ॥
सतगुरु सेवे आपणा हउ सद कुरबाणै तासु ॥
खड़ि दरगह पैनाईऐ मुखि हरि नाम निवासु ॥३॥
जह देखा तह रवि रहे सिव सकती का मेलु ॥
त्रिहु गुण बंधी देहुरी जो आइआ जगि सो खेलु ॥
विजोगी दुखि विछुड़े मनमुखि लहहि न मेलु ॥४॥
मनु बैरागी घरि वसै सच भै राता होइ ॥
गिआन महारसु भोगवै बाहुड़ि भूख न होइ ॥
नानक इहु मनु मारि मिलु भी फिरि दुखु न होइ ॥५॥१८॥(20)॥