भैरवी -सोहन लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sohan Lal Dwivedi Part 1
किसान
ये नभ-चुम्बी प्रासाद-भवन,
जिनमें मंडित मोहक कंचन,
ये चित्रकला-कौशल-दर्शन,
ये सिंह-पौर, तोरन, वन्दन,
गृह-टकराते जिनसे विमान,
गृह-जिनका सब आतंक मान,
सिर झुका समझते धन्य प्राण,
ये आन-बान, ये सभी शान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान!
वह तेरी ताक़त पर किसान !
ये रंग-महल, ये मान-भवन,
ये लीलागृह, ये गृह-उपवन,
ये क्रीड़ागृह, अन्तर प्रांगण,
रनिवास ख़ास, ये राज-सदन,
ये उच्च शिखर पर ध्वज निशान,
ड्योढ़ी पर शहनाई सुतान,
पहरेदारों की खर कृपाण,
ये आन-बान, ये सभी शान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान !
वह तेरी ताक़त पर किसान!
ये नूपुर की रुनझुन रुनझुन,
ये पायल की छम छम छम धुन,
ये गमक, मीड़, मीठी गुनगुन,
ये जन-समूह की गति सुनमुन,
ये मेहमान, ये मेज़मान,
साक्री, सूराही का समान,
ये जलसा महफ़िल, समाँ, तान,
ये करते हैं किस पर गुमान ?
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी रहमत पर किसान !
वह तेरी ताक़त पर किसान !
चलती शोभा का भार लिये,
अंगों का तरुण उभार लिये,
नखशिख सोलह शृङ्गार किये,
रसिकों के मन का प्यार लिये,
वह रूप, देख जिसको अजान,
जग सुध-बुध खोता हृदय-प्राण,
विधि की सुन्दरता का बखान,
प्राणों का अर्पण, प्रणय गान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी हिकमत पर किसान !
वह तेरी किस्मत पर किसान !
सभ्यता तीन बल खाती है,
इठलाती है, इतराती है,
शिष्टता लंक लचकाती है,
झुक झूम भूमि रज लाती है,
नम्रता, विनय, अनुनय महान,
सजनता, मधुर स्वभाव बान;
आगत-स्वागत, सम्मान-मान,
सरलता, शील के विशद गान,
वह तेरी दौलत पर किसान!
वह तेरी मेहनत पर किसान !!
वह तेरी रहमत पर किसान !
वह तेरी कुव्वत पर किसान !
शूरों-वीरों के बाहुदंड,
जिनमें अक्षय बल है प्रचंड,
ये प्रणवीरों के प्रण अखंड,
जो करते भूतल खंड-खंड,
ये योधाओं के धनुष-वाण,
ये वीरों के चमचम कृपाण,
ये शूरों के विक्रम महान,
ये रणवीरों की विजय-तान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी रहमत पर किसान !
वह तेरी ताकत पर किसान!
ये बड़े बड़े प्राचीन किले
जो महाकाल से नहीं हिले,
ये यश:स्तम्भ जो लौह ढले
जिनमें वीरों के नाम लिखे,
ये आर्यों के आदर्श गान,
ये गुप्त-वंश की विजय तान,
ये रजपूती जौहर गुमान,
ये मुग़ल-मराठों के बखान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान !
वह तेरी जुर्रत पर किसान !
ये इन्द्रप्रस्थ के राज्य-सदन,
पाटलीपुत्र के भव्य भवन,
ये मगध, अयोध्या, ऋषिपत्तन,
उज्जैन अवन्ती के प्रांगण,
वैशाली का वैभव महान,
काशी-प्रयाग के कीर्ति-गान,
लखनवी नवाबों के वितान,
मथुरा की सुख-सम्पति महान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान !
वह तेरी ताकत पर किसान !
इस भारत का सुखमय अतीत,
जिसकी सुधि अब भी है पुनीत;
इस वर्तमान के विभव गीत,
जिनमें मन का मधु संगृहीत,
आशाओं का सुख मूर्तिमान,
अरमानों का स्वर्णिम विहान,
प्रतिदिन,प्रतिपल की क्रिया,ध्यान,
उज्ज्वल भविष्य के तान तान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान !
वह तेरी ताक़त पर किसान !
कल्पना पङ्ख फैलाती है,
छू छोर क्षितिज के आती है,
भावना डुबकियाँ खाती है,
सागर मथ अमृत लाती है,
ये शब्द विहग से गीतमान,
ये छन्द मलय से धावमान,
प्रतिभा की डाली पुष्पमान,
तनता मृदु कविता का वितान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान!
वह तेरी ताक़त पर किसान !
निर्णय देते हैं न्यायालय,
स्नातक बिखेरते विद्यालय ।
कौशल दिखलाते यन्त्रालय,
श्रद्धा समेटते देवालय,
ग्रन्थालय के ये गहन ज्ञान,
संगीतालय के तान-गान,
शस्त्रालय के खनखन कृपाण,
शास्त्रालय के गौरव महान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान !
वह तेरी कुव्वत पर किसान ।
ये साधु, सती, ये यती, सन्त,
ये तपसी-योगी, ये महन्त,
ये धनी-गुनी, पण्डित अनन्त,
ये नेता, वक्ता, कलावन्त
ज्ञानी-ध्यानी का ज्ञान-ध्यान,
दानी-मानी का दान-मान,
साधना, तपस्या के विधान,
ये मानव के बलिदान-गान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान !
वह तेरी ताक़त पर किसान !
ये घनन-घनन घन घंटारव,
ये झाँझ-मृदंग-नाद भैरव,
ये स्वर्ण-थाल भारती विभव,
ये शङ्ख-ध्वनि, पूजन गौरव,
ये जन-समूह सागर समान,
जो उमड़ रहा तज धैर्य-ध्यान,
केसर, कस्तूरी, धूप दान
ये भक्ति-भाव के मत्त गान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी ग़फ़लत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान!
ये मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर,
पादरी, मौलवी, पण्डितवर,
ये मठ, विहार, गद्दी गुरुवर,
भिक्षुक, सन्यासी, यतीप्रवर,
जप-तप, व्रत-पूजा, ज्ञान-ध्यान,
रोज़ा-नमाज़, वहदत, अजान,
ये धर्म-कर्म, दीनो-इमान,
पोथी पुराण, कलमा- कुरान,
वह तेरी दौलत पर किसान !
वह तेरी मेहनत पर किसान !
वह तेरी न्यामत पर किसान !
वह तेरी बरकत पर किसान!
ये बड़े-बड़े साम्राज्य – राज,
युग-युग से पाते चले आज,
ये सिंहासन, ये तख्त-ताज,
ये किले दुर्ग, गढ़ शस्त्र-साज,
इन राज्यों की ईंटें महान,
इन राज्यों की नींवें महान,
इनकी दीवारों की उठान,
इनकी प्राचीरों के उड़ान,
वह तेरी हड्डी पर किसान !
वह तेरी पसली पर किसान !
वह तेरी यांतों पर किसान!
नस की आँतों पर रे किसान!
यदि हिल उठ तू ओ शेषनाग !
हो ध्वस्त पलक में राज्य-भाग,
सम्राट् निहारे, नींद त्याग,
है कहीं मुकुट, तो कहीं पाग!
सामन्त भग रहे बचा जान,
सन्तरी भयाकुल, लुप्त ज्ञान,
सेनायें हैं ढूँढ़ती त्राण;
उड़ गये हवा में ध्वज-निशान !
साम्राज्यवाद का यह विधान,
शासन-सत्ता का यह गुमान,
वह तेरी रहमत पर किसान !
वह तेरी गफलत पर किसान !
मा ने तुझ पर आशा बाँधी,
तू दे अपने बल की काँधी;
ओ मलय पवन बन जा आंधी,
तुझसे ही गांधी है गांधी,
तुझसे सुभाष है भासमान,
तुझमे मोती का बढ़ा मान;
तू ज्योति जवाहर की महान,
उड़ता नभ पर अपना निशान,
वह तेरी ताकत पर किसान !
वह तेरी कुव्वत पर किसान!
वह तेरी जुरअत पर किसान !
वह तेरी हिम्मत पर किसान !
तू मदवालों से भाग-भाग,
सोये किसान, उठ ! जाग-जाग!
निष्ठुर शासन में लगा आग,
गा महाक्रान्ति का अभयराग!
लख जननी का मुख आज म्लान,
वह तेरा ही धर रही ध्यान,
तेरा लोहा जो सके मान,
किसमें इतना बल है महान ?
रे मर मिटने की ठान-ठान,
ले स्वतन्त्रता का शुभ विहान ।
गूंजे नभ दिशि में एक तान_
जयजन्मभूमि ! जय-जय किसान!
[किसान से]
कणिका
उदय हुआ जीवन में ऐसे
परवशता का प्रात ।
आज न ये दिन ही अपने हैं
आज न अपनी रात!
पतन, पतन की सीमा का भी
होता है कुछ अन्त !
उठने के प्रयत्न में
लगते हैं अपराध अनंत !
यहीं छिपे हैं धन्वा मेरे
यहीं छिपे हैं तीर,
मेरे आँगन के कण-कण में
सोये अगणित वीर!
हल्दीघाटी
वैरागन-सी बीहड़ बन में
कहाँ छिपी बैठी एकान्त ?
मातः ! आज तुम्हारे दर्शन को
मैं हूँ व्याकुल उद्भ्रान्त !
तपस्विनी, नीरव निर्जन में
कौन साधना में तल्लीन ?
बीते युग की मधुरस्मृति में
क्या तुम रहती हो लवलीन ?
जगतीतल की समर-भूमि में
तुम पावन हो लाखों में,
दर्शन दो, तव चरणधूलि
ले लूं मस्तक में, आँखों में।
तुममें ही हो गये वतन के
लिए अनेकों वीर शहीद,
तुम-सा तीर्थ-स्थान कौन
हम मतवालों के लिए पुनीत !
आज़ादी के दीवानों को
क्या जग के उपकरणों में ?
मन्दिर मसजिद गिरजा, सब तो
बसे तुम्हारे चरणों में!
कहाँ तुम्हारे आँगन में
खेला था वह माई का लाल,
वह माई का लाल, जिसे
पा करके तुम हो गई निहाल ।
वह माई का लाल, जिसे
दुनिया कहती है वीर प्रताप,
कहाँ तुम्हारे आँगन में
उसके पवित्र चरणों की छाप ?
उसके पद-रज की कीमत क्या
हो सकता है यह जीवन ?
स्वीकृत हो, वरदान मिले,
लो चढ़ा रहा अपना कण कण !
तुमने स्वतन्त्रता के स्वर में
गाया प्रथम प्रथम रणगान,
दौड़ पड़े रजपूत बांकुरे
सुन-सुनकर आतुर आह्वान !
हल्दीघाटी, मचा तुम्हारे
आँगन में भीषण संग्राम,
रज में लीन हो गये पल में
अगणित राजमुकुट-अभिराम!
युग-युग बीत गये, तब तुमने
खेला था अद्भुत रणरंग,
एक बार फिर, भरो हमारे
हृदयों में मा वही उमंग।
गाओ, मा, फिर एक बार तुम
वे मरने के मीठे गान,
हम मतवाले ही स्वदेश के
चरणों में हँस हँस बलिदान!
राणा प्रताप के प्रति
कल हुआ तुम्हारा राजतिलक
बन गये आज ही वैरागी ?
उत्फुल्ल मधु-मदिर सरसिज में
यह कैसी तरुण अरुण आगी?
क्या कहा, कि-,
‘तब तक तुम न कभी,
वैभव सिंचित शृङ्गार करो’
क्या कहा, कि-,
‘जब तक तुम न विगत-
गौरव स्वदेश उद्धार करो!’
माणिक मणिमय सिंहासन को
कंकण पत्थर के कोनों पर,
सोने-चाँदी के पात्रों को
पत्तों के पीले दोनों पर,
वैभव से विह्वल महलों को
काँटों की कटु झोपड़ियों पर,
मधु से मतवाली बेलायें
भूखी बिलखाती घड़ियों पर,
रानी कुमार-सी निधियों को
मा की आँसू की लड़ियों पर,
तुमने अपने को लुटा दिया
आजादी की फुलझड़ियों पर !
निर्वासन के निष्ठुर प्रण में
धुंधुवाती रक्त-चिता रण में,
वाणों के भीषण वर्षण में
फौहारे-से बहते व्रण में,
बेटा की भूखी आहों में
बेटी की प्यासी दाहों में,
तुमने आजादी को देखा
मरने की मीठी चाहों में !
किस अमर शक्ति आराधन में
किस मुक्ति युक्ति के साधन में,
मेरे वैरागी वीर व्यग्र
किस तपबल के उत्पादन में ?
हम कसे कवच, सज अस्त्र-शस्त्र
व्याकुल हैं रण में जाने को,
मेरे सेनापति ! कहाँ छिपे ?
तुम आओ शंख बजाने को;
जागो ! प्रताप, मेवाड़ देश के
लक्ष्यभेद हैं जगा रहे,
जागो ! प्रताप, मा-बहनों के
अपमान-छेद हैं जगा रहे;
जागो प्रताप, मदवालों के
मतवाले सेना सजा रहे,
जागो प्रताप, हल्दीघाटी में
बैरी भेरी बजा रहे !
मेरे प्रताप, तुम फूट पड़ो
मेरे आँसू की धारों से,
मेरे प्रताप, तुम गूंज उठो
मेरी संतप्त पुकारों से;
मेरे प्रताप, तुम बिखर पड़ो
मेरे उत्पीडन भारों से,
मेरे प्रताप, तुम निखर पड़ो
मेरे बलि के उपहारों से;
बुद्धदेव के प्रति
आओ फिर से करुणावतार !
वट-तट पर हृदय अधीर लिये,
है खड़ी सुजाता खीर लिये;
खाले कुटिया के बंद द्वार।
आओ फिर से करुणावतार !
फिर बैठे हैं चिंतित अशोक,
शिर छत्र, किंतु है हृदय-शोक!
रण की जयश्री बन रही हार!
आओ फिर से करुणावतार !
मानव ने दानव धरा रूप,
भर रहे रक्त से समर-कूप,
डूबती धरा को लो उबार !
आयो फिर से करुणावतार !
जय राष्ट्रीय निशान!
जय राष्ट्रीय निशान!
जय राष्ट्रीय निशान!!!
लहर लहर तू मलय पवन में,
फहर फहर तू नील गगन में,
छहर छहर जग के आंगन में,
सबसे उच्च महान!
सबसे उच्च महान!
जय राष्ट्रीय निशान!!
जब तक एक रक्त कण तन में,
डिगे न तिल भर अपने प्रण में,
हाहाकार मचावें रण में,
जननी की संतान
जय राष्ट्रीय निशान!
मस्तक पर शोभित हो रोली,
बढे शुरवीरों की टोली,
खेलें आज मरण की होली,
बूढे और जवान
बूढे और जवान!
जय राष्ट्रीय निशान!
मन में दीन-दुःखी की ममता,
हममें हो मरने की क्षमता,
मानव मानव में हो समता,
धनी गरीब समान
गूंजे नभ में तान
जय राष्ट्रीय निशान!
तेरा मेरा मेरुदंड हो कर में,
स्वतन्त्रता के महासमर में,
वज्र शक्ति बन व्यापे उस में,
दे दें जीवन-प्राण!
दे दें जीवन प्राण!
जय राष्ट्रीय निशान!!