भंडि जमीऐ भंडि निमीऐ भंडि मंगणु वीआहु-सलोक-गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji

भंडि जमीऐ भंडि निमीऐ भंडि मंगणु वीआहु-सलोक-गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji

भंडि जमीऐ भंडि निमीऐ भंडि मंगणु वीआहु ॥
भंडहु होवै दोसती भंडहु चलै राहु ॥
भंडु मुआ भंडु भालीऐ भंडि होवै बंधानु ॥
सो किउ मंदा आखीऐ जितु जमहि राजान ॥
भंडहु ही भंडु ऊपजै भंडै बाझु न कोइ ॥
नानक भंडै बाहरा एको सचा सोइ ॥
जितु मुखि सदा सालाहीऐ भागा रती चारि ॥
नानक ते मुख ऊजले तितु सचै दरबारि ॥२॥(473)॥