बोलते हैं रंग -जो करे सो जोकर-अशोक चक्रधर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ashok Chakradhar ,

बोलते हैं रंग -जो करे सो जोकर-अशोक चक्रधर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ashok Chakradhar ,

(होली पर तरह-तरह के रंग बोलने लगते हैं)

रंग बोलते हैं, हां जी, रंग बोलते हैं।
रंग जाती गोरी
गोरी के अंग बोलते हैं।

बम भोले जय जय शिवशंकर
चकाचक्क बनती है,
लाल-लाल छन्ने में भैया
हरी-हरी छनती है। वैसे नहीं बोलते
पीकर भंग बोलते हैं।

रंग विहीन, हृदय सूने
और बड़े-बड़े बैरागी,
हृदयहीन, गमगीन, मीन
या वीतरागिये त्यागी, घट में पड़ी
कि साधू भुक्खड़ नंग बोलते हैं।

हल्ला ऐसा हल्ला दिल की
मनहूसी हिल जाए,
रूसी-रूसी फिरने वाली
कलियों सी खिल जाए। आओ खेलें—
साली-जीजा संग बोलते हैं।

होली तो हो ली, अब
बोलो रंग छुड़ाएं कैसे?
कैरोसिन मंगवाओ
बढ़ गए कैरोसिन के पैसे। होली हो ली
महंगाई के रंग बोलते हैं।

ढोलक नहीं बजाओ
ख़ाली पेट बजाओ यारो,
दरवाज़े पर खाली डिब्बे
टीन सजाओ यारो! कुचले हुए पेट के
कुचल रंग बोलते हैं।

रंग बोलते हैं,
हां जी, रंग बोलते हैं।
रंग जाती गोरी
गोरी के अंग बोलते हैं।