बेसरो-सामाँ थे लेकिन इतना अन्दाज़ा न था-दर्द आशोब -अहमद फ़राज़-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ahmed Faraz,

बेसरो-सामाँ थे लेकिन इतना अन्दाज़ा न था-दर्द आशोब -अहमद फ़राज़-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ahmed Faraz,

बेसरो-सामाँ थे लेकिन इतना अन्दाज़ा न था
इससे पहले शहर के लुटने का आवाज़ा न था

ज़र्फ़े-दिल देखा तो आँखें कर्ब से पथरा गयीं
ख़ून रोने की तमन्ना का ये ख़मियाज़ा न था

आ मेरे पहलू में आ ऐ रौनके-बज़्मे-ख़याल
लज्ज़ते-रुख़्सारो-लब का अब तक अन्दाजा न था

हमने देखा है ख़िजाँ में भी तेरी आमद के बाद
कौन सा गुल था कि गुलशन में तरो-ताज़ा न था

हम क़सीदा ख़्वाँ नहीं उस हुस्न के लेकिन ‘फ़राज़’
इतना कहते हैं रहीने-सुर्मा-ओ-ग़ाज़ा न था