बादलों-जैसा इन्सान-बांग्ला कविता(अनुवाद हिन्दी में) -शंख घोष -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankha Ghosh

बादलों-जैसा इन्सान-बांग्ला कविता(अनुवाद हिन्दी में) -शंख घोष -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankha Ghosh

 

मेरे सामने से
बादलों-जैसा वह इन्सान चला जा रहा है
उसकी देह को थपकने से
लगता है पानी झरने लगेगा

मेरे सामने से
बादलों-जैसा वह इन्सान जा रहा है
उसके पास जाकर बैठने पर
लगता है छाया उतर आएगी

वह देगा, या कि लेगा? वह आश्रय है, या कि आश्रय चाहता है?
मेरे सामने से
बादलों-जैसा वह इन्सान चला जा रहा है

उसके सामने जाकर खड़े होने से
हो सकता है मैं भी कभी बादल बन जाऊँ!

 

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