बांग्ला कविता(अनुवाद हिन्दी में) -शंख घोष -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankha Ghosh Part 4

बांग्ला कविता(अनुवाद हिन्दी में) -शंख घोष -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankha Ghosh Part 4

 

हवा

हुआ तो हुआ, नहीं तो नहीं
रखना जीवन को
इसी तरह

यही नहीं, सीखो कुछ
रस्ते पर, गुमसुम
बैठी भिखारिन की आँखों के
धीर प्रतिवाद से

है, यह सब भी है।

 

कहकर बताता या लिखकर

कहकर बताता
या लिखकर
या करके स्पर्श

लगता है भूल हुई मेरे समझने में,
यह तो नहीं चाहा था कहना

अन्त में सभा के जब काग़ज़ ले हाथ में जाते हैं लोग तब
लगता है, कहूँ मैं पुकारकर :
आइए, सकूँगा कह
मैं अबकी बार।