बांग्ला कविता(अनुवाद हिन्दी में) -शंख घोष -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankha Ghosh Part 3

बांग्ला कविता(अनुवाद हिन्दी में) -शंख घोष -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankha Ghosh Part 3

 

तुम

उड़ता हूँ
और भटकता हूँ
दिन भर पथ में ही
सुलगता हूँ

पर अच्छा नहीं लगता
जब तक
लौट कर देख न लूँ कि तुम हो,
तुम ।

 

अख़बार

रोज़
सुबह के अख़बार में
एक शब्द
बर्बरता

अपनी
सनातन अभिधा का
नित नया विस्तार
ढूँढ़ता है ।

 

यौवन

दिन और रात
के बीच
परछाइयाँ
चिड़ियों के उड़ान की

याद आती हैं
यूँ भी
हमारी आख़िरी मुलाक़ातें ।

 

नीग्रो दोस्त के नाम एक ख़त

रिचर्ड ! रिचर्ड !!
रिचर्ड तुम्हारा नाम मेरे लफ़्ज़ों में है ।
कौन रिचर्ड ?
कोई नहीं ।
रिचर्ड मेरा लफ़्ज़ नहीं है ।

रिचर्ड ! रिचर्ड !!
रिचर्ड तुम्हारा नाम मेरे सपनों में है ।
कौन रिचर्ड ?
कोई नहीं ।
रिचर्ड मेरा सपना नहीं है ।

रिचर्ड ! रिचर्ड !!
रिचर्ड तुम्हारा नाम मेरे दुख में है ।
कौन रिचर्ड ?
कोई नहीं ।
रिचर्ड मेरा दुख नहीं है ।

 

सपना

ओ पृथ्वी !
अब भी क्यों नहीं टूटती
मेरी नींद

सपनों के भीतर
ऊँचे पहाड़ों की तहों से
झरती हैं पंखुरियाँ

झरती हैं पंखुरियाँ
पहाड़ों से
और इसी बीच
जाग उठते हैं धान के खेत

जब लक्ष्मी घर आएगी
घर आएगी जब लक्ष्मी

वे आएँगे अपनी बन्दूकें और
कृपाण लिए हाथों में, ओ पृथ्वी !

अब भी क्यों नहीं टूटती
मेरी नींद ।

 

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