बाँसुरी -सोहन लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Sohan Lal Dwivedi Part 2
ध्वजा-गीत
हम नन्हें नन्हें बच्चे हैं,
नादान उमर के कच्चे हैं,
पर, अपनी धुन के सच्चे हैं,
जननी की जय जय गायेंगे।
भारत की ध्वजा उड़ायेंगे।
अपना पथ कभी न छोड़ेंगे,
अपना प्रण कभी न तोड़ेंगे,
हिम्मत से नाता जोड़ेंगे,
हम हिमिगिरि पर चढ़ जायेंगे।
भारत की वजा उड़ायेंगे।
हम भय से कभी न डोलेंगे,
अपनी ताकत को तोलेंगे,
माता के बन्धन खोलेंगे,
अपना शिर भेंट चढ़ायेंगे।
भारत की ध्वजा उड़ायेंगे।
प्रकृति-संदेश
पर्वत कहता शीश उठाकर,
तुम भी ऊँचे बन जाओ।
सागर कहता है लहराकर,
मन में गहराई लाओ।
समझ रहे हो क्या कहती हैं
उठ उठ गिर गिर तरल तरंग
भर लो भर लो अपने दिल में
मीठी मीठी मृदुल उमंग!
पृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो
कितना ही हो सिर पर भार,
नभ कहता है फैलो इतना
ढक लो तुम सारा संसार!
यह भारतवर्ष हमारा है!
यह भारतवर्ष हमारा है!
हमको प्राणों से प्यारा है!!
है यहाँ हिमालय खड़ा हुआ,
संतरी सरीखा अड़ा हुआ,
गंगा की निर्मल धारा है!
यह भारतवर्ष हमारा है!
क्या ही पहाड़ियाँ हैं न्यारी?
जिनमें सुंदर झरने जारी!
शोभा में सबसे न्यारा है!
यह भारतवर्ष हमारा है!
है हवा मनोहर डोल रही,
बन में कोयल है बोल रही।
बहती सुगंध की धारा है!
यह भारतवर्ष हमारा है!
जन्मे थे यहीं राम सीता,
गूँजी थी यहीं मधुर गीता।
यमुना का श्याम किनारा है!
यह भारतवर्ष हमारा है!
तन मन धन प्राण चढ़ाएँगे,
हम इसका मान बढ़ाएँगे!
जग का सौभाग्य सितारा है!
यह भारतवर्ष हमारा है!
हिमालय
युग युग से है अपने पथ पर
देखो कैसा खड़ा हिमालय!
डिगता कभी न अपने प्रण से
रहता प्रण पर अड़ा हिमालय!
जो जो भी बाधायें आईं
उन सब से ही लड़ा हिमालय,
इसीलिए तो दुनिया भर में
हुआ सभी से बड़ा हिमालय!
अगर न करता काम कभी कुछ
रहता हरदम पड़ा हिमालय
तो भारत के शीश चमकता
नहीं मुकुट–सा जड़ा हिमालय!
खड़ा हिमालय बता रहा है
डरो न आँधी पानी में,
खड़े रहो अपने पथ पर
सब कठिनाई तूफानी में!
डिगो न अपने प्रण से तो ––
सब कुछ पा सकते हो प्यारे!
तुम भी ऊँचे हो सकते हो
छू सकते नभ के तारे!!
अचल रहा जो अपने पथ पर
लाख मुसीबत आने में,
मिली सफलता जग में उसको
जीने में मर जाने में!
ओस
हरी घास पर बिखेर दी हैं
ये किसने मोती की लड़ियाँ?
कौन रात में गूँथ गया है
ये उज्ज्वल हीरों की करियाँ?
जुगनू से जगमग जगमग ये
कौन चमकते हैं यों चमचम?
नभ के नन्हें तारों से ये
कौन दमकते हैं यों दमदम?
लुटा गया है कौन जौहरी
अपने घर का भरा खजा़ना?
पत्तों पर, फूलों पर, पगपग
बिखरे हुए रतन हैं नाना।
बड़े सवेरे मना रहा है
कौन ख़ुशी में यह दीवाली?
वन उपवन में जला दी है
किसने दीपावली निराली?
जी होता, इन ओस कणों को
अंजली में भर घर ले आऊँ?
इनकी शोभा निरख निरख कर
इन पर कविता एक बनाऊँ।