पूरे गुर का हुकमु न मंनै-श्लोक -गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji

पूरे गुर का हुकमु न मंनै-श्लोक -गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji

पूरे गुर का हुकमु न मंनै ओहु मनमुखु अगिआनु मुठा बिखु माइआ ॥
ओसु अंदरि कूड़ु कूड़ो करि बुझै अणहोदे झगड़े दयि ओस दै गलि पाइआ ॥
ओहु गल फरोसी करे बहुतेरी ओस दा बोलिआ किसै न भाइआ ॥
ओहु घरि घरि हंढै जिउ रंन दोहागणि ओसु नालि मुहु जोड़े ओसु भी लछणु लाइआ ॥
गुरमुखि होइ सु अलिपतो वरतै ओस दा पासु छडि गुर पासि बहि जाइआ ॥
जो गुरु गोपे आपणा सु भला नाही पंचहु ओनि लाहा मूलु सभु गवाइआ ॥
पहिला आगमु निगमु नानकु आखि सुणाए पूरे गुर का बचनु उपरि आइआ ॥
गुरसिखा वडिआई भावै गुर पूरे की मनमुखा ओह वेला हथि न आइआ ॥303॥

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