पिता।-राही चल : अनिल मिश्र प्रहरी (Anil Mishra Prahari)| Hindi Poem | Hindi Kavita,
पिता से भरा पूरा घर है
नहीं तो दूभर गुजरबसर है।
वे हैं तो सभी अपने लगते
वरना अजनबी पूरा शहर है।
परिवार में सुख -चैन की बंसी
सब उनकी मिहनत का असर है।
जिसने कभी रुकके देखा ही नहीं
कि सुबह- शाम या तप्त दोपहर है।
अपने हर शौक को सहर्ष छोड़ा
ऐसी कुर्बानी भी मिलती किधर है।
पिता से घर-गृहस्थी सब आबाद
नहीं तो दुनिया भी ढाती कहर है।
पिता के बिना जीना आसान नहीं
उनसे जुदाई भी एक जहर है।