पास से गुज़रते हमउम्रों-गुरभजन गिल-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gurbhajan Gill
हमारी किताबें कहीं और हैं,
पन्ना पन्ना बिखरा
घूरों पर पड़े शब्द शब्द
वाक्य वाक्य हमारी प्रतीक्षा में।
हमारे बस्ते और हैं।
तुम्हें माँ ने भेजा है
माथा चूम कर
शगुन का दही खिलाकर।
दोपहर का टिफिन साथ में बाँध कर।
हमें निकाला झिड़क कर
कहा जाओ कमाओ तो खाओ।
घूर खँगाल कर कमाने चले हैं।
और धक्के खाते खाते जवान हो जाएँगे।
हमें भी सपने आते हैं आकाश में उड़ने के।
सूरज और तारों से छुपा-छिपाई खेलने के।
आकाश गंगा में
चरती गायों का थन पीने के।
हमारे जटा जूट बालों में जब
कभी कंघी फिरती है,
सच जानो!
माँ ज़हर-सी लगती है।
उलझे बालों में जमीं मैल
अब चमड़ी का हिस्सा बन गई है।
हमें भी रिबन में गुँथे बाल
बड़े हसीन लगते हैं।
पर हमारे घर में तो
समूचा शीशा भी नहीं
मुँह देखने के लिए।
टूटे शीशे का एक टुकड़ा
टेढ़े मेढ़े मुँह दिखाता।
मुँह चिढ़ाता लगता है।
घूर से बीने प्लास्टिक पोलीथीन
धोएँगे सुखाएँगे
बनिए के यहाँ बेचने
किसी दूकान पर ले जाएँगे
आटा नमक तेल लेकर
भाई काम चलाएँगे
धीरे धीरे धीरे धीरे धीरे
बड़े हो जाएँगे
उम्र लँघाएँगे।
हमें गुलाब जल से
मुँह धोना अच्छा लगता है।
फटे पुराने लिबास की जगह हमें भी
फूलों वाला कुर्ता चाहिए है।
अनछुआ और नया नकोर
पुरानी उतरन पहनते
रीत चली है कंचन देह।
हमारी भी तुम्हारी तरह
यही धरती माँ है।
हमारा बाबुल भी तुम्हारे वाला अंबर है।
एक जैसे मौसमों में
जीते जी हमीं क्यों मरते हैं अनआई मौत।
जवान उम्र में हमारी ही
छातियाँ क्यों पिचकती हैं
क्यों फिरते हैं? बुलडोजर हमारी छाती पर
हमारी झुग्गियाँ ढहा कर।
हमारी पतीलियाँ ही क्यों
ऊबड़-खाबड़ होती हैं।
तुम नहीं जान सकोगे चूरी खाने वालों।
एक होकर भी धरती के दो टुकड़े हैं
आधा तुम्हारा और दूसरा आधा भी हमारा नहीं।
घास फूस कौन बोता है?
पर उग पड़े हैं
हम इतनी जल्दी
नहीं मरने वाले
चलो जाओ पढ़ो
अपने स्कूलों में
बनो बाबूनुमा पुर्जे
मिल जाओ खारे समुद्र में
हमारे आँसू भी
वहाँ पहले ही दफ़न हैं।