पर्यावरण।-राही चल : अनिल मिश्र प्रहरी (Anil Mishra Prahari)| Hindi Poem | Hindi Kavita,
गाँवों का सूख रहा हरेक कुआँ है
अम्बर में फैला जहरीला धुआँ है,
विकास साँसों में विष घोल रहा
आदमी सूखे पेड़ों – सा डोल रहा।
जबतक हवाओं में घुलता रहेगा जहर
विकल हर गाँव होगा, बेकल हर शहर,
धरती का नित्य बढ़ता तापमान है
आदमी सो रहा चादर तान है।
बढ़ने की होड़ में मानव बना अंधा है
लाशों को ढोने में लगा हर कंधा है,
आसमान से जहर ही तो बरसेगा
शुद्ध हवा, अन्न, पानी को जग तरसेगा।
धरा, नभ किस-किस को तू हिसाब देगा
भावी पीढ़ी को पीने को क्या तेजाब देगा?
विनाश से पहले ही बच अभिमानी
बचपन न होगा तो होगी क्या जवानी?