पराई राहें- आँगन के पार द्वार अज्ञेय- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय”-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Sachchidananda Hirananda Vatsyayan Agyeya,
दूर सागर पार
पराए देश की अनजानी राहें।
पर शीलवान तरुओं की
गुरु, उदार
पहचानी हुई छाँहें।
छनी हुई धूप की सुनहली कनी को बीन,
तिनके की लघु अनी मनके-सी बींध, गूँथ, फेरती
सुमिरनी,
पूछ बैठी:
कहाँ, पर कहाँ वे ममतामयी बाँहें?
ब्रुसेल्स (एक कहवाघर के बाहर खड़े), 15 मई, 1960