परवेज़ संधू-गुरभजन गिल-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gurbhajan Gill
परवेज़ संधू कहानी लिखती नहीं सुनाती है।
छोटे छोटे वाक्यों शब्दों के स्वैटर बुनती
रिश्तों के धागे जोड़ जोड़ कर गरमाहट बख़्शती।
धुर भीतर बैठी मासूम बच्ची से कहती
तू बोलती क्यों नहीं? सच सच बता दे सब कुछ।
कडुवा कसैला, दम घोटू धुँए जैसा।
सोन परी की अंतरपीड़ा
यदि तू नहीं सुनाएगी
तो मर जाएगी।
मर न, सुना दे बेबाकी से।
सुनने वालों को शीशा दिखा।
अपराधमुक्त होजा।
इतना भार उठा कर कैसे चलेगी।
कहानी लिखती नहीं परवेज़ पिघलती है
तरल लोहे के भाँति मन की कुठाली में
इस्पात उड़ेलती है।
कलमों, कहानियों, कविताओं की तरह।
सोई लगती है पर दिन रात जागती
जगत तमाशा देखती दिखाती दर्द की देवी की तरह।
उसके धुर भीतर कब्रें दर कब्रें हैं।
कतारो-कतार चुपचाप।
गुम सुम रहतीं साथ साथ पास पास
जा जा बैठतीं चुप वाले कोड़े की
मार सहतीं। पर जब बोलतीं
परत दर परत
एक एक कसी गाँठ
सहजता से खोलतीं।
परवेज़ की कहानी में बड़ा संसार।
उड़ते परिंदों की पर कटी डार।
बेगाने-से देश में सजन के भेष में
अपने ही मारते हैं।
जान लेने वाली तीखी कटार कैसी मारो मार
जीत है न हार।
परवेज़ की कहानी,
किस्सा सुनाने के तरीके की तरह।
मीठी मीठी डाँट,
सुनाने के सलीके की तरह।
शब्द शब्द वाक्य वाक्य,
तरल लोहा जिस्म लाँघे,
सोच शृंखला से आर पार।
नन्हे नन्हे कदम चलती
छीजने के बाद,
मगन मिट्टी फिर जुड़ती।
पीसती चक्की में आपा
दर्द गूँधती तवा तपाती।
धीमी धीमी आँच पर रोटी उतारती और खिलाती।
तितली-सी सवीना हर साँस के साथ चलती।
बात करती किस्सा सुनाती।
सपनों जैसे पंख लगाकर चली गई गाथा सुनाती।
मनका मनका माला फेरती याद आती।
परवेज़ कहानी नहीं लिखती सुनाती है चिट्ठी की तरह।
लिखतुम परवेज़ पढ़तुम सारे।
शब्द सँवारे ।
धरती परिंदे इसकी आज्ञा में बैठते सारे।