न इंतज़ार की लज़्ज़त , न आरज़ू की थकन-दर्द आशोब -अहमद फ़राज़-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ahmed Faraz,
न इंतज़ार की लज़्ज़त न आरज़ू की थकन
बुझी हैं दर्द की शम्एँ कि सो गया है बदन
सुलग रही हैं न जाने किस आँच से आँखें
न आँसुओं की तलब है न रतजगों की जलन
दिले-फ़रेबज़दा ! दावते-नज़र प’ न जा
ये आज के क़दो-गेसू हैं कल के दारो-रसन
ग़रीबे-शहर किसी साय-ए-शजर में न बैठ
कि अपनी छाँव में ख़ुद जल रहे हैं सर्वो-समन
बहारे-क़ुर्ब से पहले उजाड़ देती हैं
जुदाइयों की हवाएँ महब्बतों के चमन
वो एक रात गुज़र भी गई मगर अब तक
विसाले-यार की लज़्ज़त से टूटता है बदन
फिर आज शब तिरे क़दमों की चाप के हमराह
सुनाई दी है दिले-नामुराद की धड़कन
ये ज़ुल्म देख कि तू जाने-शाइरी है मगर
मिरी ग़ज़ल पे तिरा नाम भी है जुर्मे-सुख़न
अमीरे-शहर ग़रीबों को लूट लेता है
कभी ब-हीला-ए-मज़हब कभी ब-नामे-वतन
हवा-ए-दहर से दिल का चराग़ क्या बुझता
मगर ‘फ़राज़’ सलामत है यार का दामन