न्यौता और चुनौती -शैलेन्द्र -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shailendra Part 1
यदि मैं कहूं
यदि मैं कहूं कि तुम बिन मानिनि
व्यर्थ ज़िन्दगी होगी मेरी,
नहीं हंसेगा चांद हमेशा
बनी रहेगी घनी अंधेरी–
बोलो, तुम विश्वास करोगी ?
यदि मैं कहूं कि हे मायाविनि
तुमने तन में प्राण भरा है,
और तुम्हीं ने क्रूर मरण के
कुटिल करों से मुझे हरा है–
बोलो, तुम विश्वास करोगी ?
यदि मैं कहूं कि तुम बिन स्वामिनि,
टूटेगा मन का इकतारा,
बिखर जाएंगे स्वप्न
सूख जाएगी मधु-गीतों की धारा–
बोलो, तुम विश्वास करोगी ?
(1946 में रचित)
नादान प्रेमिका से
तुमको अपनी नादानी पर
जीवन भर पछताना होगा!
मैं तो मन को समझा लूंगा
यह सोच कि पूजा था पत्थर-
पर तुम अपने रूठे मन को
बोलो तो, क्या उत्तर दोगी ?
नत शिर चुप रह जाना होगा!
जीवन भर पछताना होगा!
मुझको जीवन के शत संघर्षों में
रत रह कर लड़ना है ;
तुमको भविष्य की क्या चिन्ता,
केवल अतीत ही पढ़ना है!
बीता दुख दोहराना होगा!
जीवन भर पछताना होगा!
(1946 में रचित)
भूत
जीवन के शत संघर्षों में रत रह कर भी,
कभी-कभी याद आ ही जाती है बिसरी दुख भरी कहानी!
ज़हर बुझे तीरों से घायल हुए हरिन सा
सहसा तड़प छटपटाता मन, आंखों से यह चलता पानी!
कभी-कभी याद आ ही जाती है बिसरी दुख भरी कहानी !
मरे हुए प्यारे सपनों के प्रेत नाचते अट्टहास कर,
ख़ूब थिरकते ये हड्डी के ढांचे चट-चरमर-चरमर कर,
ढंक सफ़ेद चादर से अपनी ठठरी, खोल ज़्ररा सा घूंघट–
संकेतों से पास बुलाती वह पिशाचनी,
असमय जो घुटमरी जवानी की नादानी!
कभी-कभी याद आ ही जाती है बिसरी दुख भरी कहानी!
तब क्षण भर को लगता जैसे, भय से खुली-खुली ये आंखें
खुली-खुली ही रह जाएंगी,
ज़रा पुतलियां फिर जाएंगी;
तेज़ी से आती जाती ये सांसे होंगी ख़त्म
मौत की क्रूर अंधेरी घिर आएगी–
भरम भरी, जितनी परिचित उतनी अनजानी!
कभी-कभी याद आ ही जाती है बिसरी दुख भरी कहानी!
किन्तु, दूसरे क्षण सुन पड़ती–
कोटि-कोटि कण्ठों की व्याकुल विकल पुकारें,
अंबर की छाती बिदारने वाली नवयुग की ललकारें,
ख़ून-पसीने से लथपथ पीड़ित शोषित मानवता की दुर्दम हुंकारें!
और दीखता, दूर भागते दुश्मन के संग,
भाग रहे हैं भूत-प्रेत सारे अतीत के
व्यर्थ भीति के, उस झूठी अशरीर प्रीत के!
सम्मुख आती स्नेहाकुल बाहें फैलाए
नई सुबह रंगीन सुखों की, स्वर्ण-सुहानी!
कमज़ोरी है, जीवन के शत संघर्षों में रत रह कर भी
कभी-कभी याद आ ही जाती है बिसरी दुख भरी कहानी !
(1947 में रचित)
दीवाली के बाद
राह देखते ‘श्री लक्ष्मी’ के शुभागमन की,
बरबस आंख मुंदी निर्धन की!
तेल हो गया ख़त्म, बुझ गे दीपक सारे,
लेकिन जलती रही दीवाली मुक्त गगन की!
चूहे आए कूदे-फांदे, और खा गए–
सात देवताओं को अर्पित खील-बताशा;
मिट्टी के लक्ष्मी-गनेश गिर चूर हो गए
दीवारें चुपचाप देखती रहीं तमाशा !
चलती रही रात भर उछल-कूद चूहों की
किन्तु न टूटी नींद थके निर्धन की;
सपने में देखा उअसने आई है लक्ष्मी
पावों में बेड़ियां, हाथ हथकड़ियां पहने !
फूट-फूट रोई वह और लगी यों कहने :
“पगले, मैं बंदिनी बनी हूं धनवालों की”
नेताओं को न्यौता!
लीडर जी, परनाम तुम्हें हम मज़दूरों का,
हो न्यौता स्वीकार तुम्हें हम मज़दूरों का;
एक बार इन गन्दी गलियों में भी आओ,
घूमे दिल्ली-शिमला, घूम यहाँ भी जाओ!
जिस दिन आओ चिट्ठी भर लिख देना हमको
हम सब लेंगे घेर रेल के इस्टेशन को;
‘इन्क़लाब’ के नारों से, जय-जयकारों से–
ख़ूब करेंगे स्वागत फूलों से, हारों से !
दर्शन के हित होगी भीड़, न घबरा जाना,
अपने अनुगामी लोगों पर मत झुंझलाना;
हाँ, इस बार उतर गाड़ी से बैठ कार पर
चले न जाना छोड़ हमें बिरला जी के घर !
चलना साथ हमारे वरली की चालों में,
या धारवि के उन गंदे सड़ते नालों में–
जहाँ हमारी उन मज़दूरों की बस्ती है,
जिनके बल पर तुम नेता हो, यह हस्ती है !
हम तुमको ले साथ चलेंगे उस दुनिया में,
सुकुमारी बम्बई पली है जिस दुनिया में,
यह बम्बई, आज है जो जन-जन को प्यारी,
देसी – परदेसी के मन की राजदुलारी !
हम तुमको ले साथ चलेंगे उस दुनिया में,
नवयुवती बम्बई पली है जिस दुनिया में,
किन्तु, न इस दुनिया को तुम ससुराल समझना,
बन दामाद न अधिकारों के लिए उलझना ।
हमसे जैसा बने, सब सत्कार करेंगे–
ग़ैर करें बदनाम, न ऐसे काम करेंगे,
हाँ, हो जाए भूल-चूक तो नाम न धरना,
माफ़ी देना नेता, मन मैला मत करना।
जैसे ही हम तुमको ले पहुँचेंगे घर में,
हलचल सी मच जाएगी उस बस्ती भर में,
कानाफूसी फैल जाएगी नेता आए–
गांधी टोपी वाले वीर विजेता आए ।
खद्दर धारी, आज़ादी पर मरने वाले
गोरों की फ़ौज़ों से सदा न डरने वाले
वे नेता जो सदा जेल में ही सड़ते थे
लेकिन जुल्मों के ख़िलाफ़ फिर भी लड़ते थे ।
वे नेता, बस जिनके एक इशारे भर से–
कट कर गिर सकते थे शीश अलग हो धड़ से,
जिनकी एक पुकार ख़ून से रंगती धरती,
लाशों-ही-लाशों से पट जाती यह धरती ।
शासन की अब बागडोर जिनके हाथों में,
है जनता का भाग्य आज जिनके हाथों में ।
कानाफूसी फैल जाएगी नेता आए–
गांधी टोपी वाले शासक नेता आए ।
घिर आएगी तुम्हें देखने बस्ती सारी,
बादल दल से उमड़ पड़ेंगे सब नर-नारी,
पंजों पर हो खड़े, उठा बदन, उझक कर,
लोग देखने आवेंगे धक्का-मुक्की कर ।
टुकुर-मुकुर ताकेंगे तुमको बच्चे सारे,
शंकर, लीला, मधुकर, धोंडू, राम पगारे,
जुम्मन का नाती करीम, नज्मा बुद्धन की,
अस्सी बरसी गुस्सेवर बुढ़िया अच्छन की ।
वे सब बच्चे पहन चीथड़े, मिट्टी साने,
वे बूढ़े-बुढ़िया, जिनके लद चुके ज़माने,
और युवकगण जिनकी रग में गरम ख़ून है,
रह-रह उफ़ न उबल पड़ता है, नया ख़ून है ।
घिर आएगी तुम्हें देखने बस्ती सारी,
बादल दल से उमड़ पड़ेंगे सब नर-नारी,
हेच काय रे कानाफूसी यह फैल जाएगी,
हर्ष क्षोभ की लहर मुखों पर दौड़ जाएगी ।
हाँ, देखो आ गया ध्यान बन आए न संकट,
बस्ती के अधिकांश लोग हैं बिलकुल मुँहफट,
ऊँच-नीच का जैसे उनको ज्ञान नहीं है,
नेताओं के प्रति अब वह सम्मान नहीं है ।
उनका कहना है, यह कैसी आज़ादी है,
वही ढाक के तीन पात हैं, बरबादी है,
तुम किसान-मज़दूरों पर गोली चलवाओ,
और पहन लो खद्दर, देशभक्त कहलाओ ।
तुम सेठों के संग पेट जनता का काटो,
तिस पर आज़ादी की सौ-सौ बातें छाँटो ।
हमें न छल पाएगी यह कोरी आज़ादी,
उठ री, उठ, मज़दूर-किसानों की आबादी ।
हो सकता है, कड़वी-खरी कहें वे तुमसे,
उन्हें ज़रा मतभेद हो गया है अब तुमसे,
लेकिन तुम सहसा उन पर गुस्सा मत होना,
लाएँगे वे जनता का ही रोना-धोना ।
वे सब हैं जोशीले, किन्तु अशिष्ट नहीं हैं,
करें तुमसे बैर, उन्हें यह इष्ट नहीं है,
वे तो दुनिया बदल डालने को निकले हैं,
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, पारसी, सभी मिले हैं ।
फिर, जब दावत दी है तो सत्कार करेंगे,
ग़ैर करें बदनाम, न ऐसे काम करेंगे,
हाँ, हो जाए भूल-चूक तो नाम न धरना,
माफ़ी देना नेता, मन मैला मत करना ।
भगतसिंह से
भगतसिंह ! इस बार न लेना काया भारतवासी की,
देशभक्ति के लिए आज भी सज़ा मिलेगी फाँसी की !
यदि जनता की बात करोगे, तुम गद्दार कहाओगे–
बम्ब सम्ब की छोड़ो, भाषण दिया कि पकड़े जाओगे !
निकला है कानून नया, चुटकी बजते बँध जाओगे,
न्याय अदालत की मत पूछो, सीधे मुक्ति पाओगे,
काँग्रेस का हुक्म; ज़रूरत क्या वारंट तलाशी की !
मत समझो, पूजे जाओगे क्योंकि लड़े थे दुश्मन से,
रुत ऐसी है आँख लड़ी है अब दिल्ली की लंदन से,
कामनवैल्थ कुटुम्ब देश को खींच रहा है मंतर से–
प्रेम विभोर हुए नेतागण, नीरा बरसी अंबर से,
भोगी हुए वियोगी, दुनिया बदल गई बनवासी की !
गढ़वाली जिसने अँग्रेज़ी शासन से विद्रोह किया,
महाक्रान्ति के दूत जिन्होंने नहीं जान का मोह किया,
अब भी जेलों में सड़ते हैं, न्यू-माडल आज़ादी है,
बैठ गए हैं काले, पर गोरे ज़ुल्मों की गादी है,
वही रीति है, वही नीति है, गोरे सत्यानाशी की !
सत्य अहिंसा का शासन है, राम-राज्य फिर आया है,
भेड़-भेड़िए एक घाट हैं, सब ईश्वर की माया है !
दुश्मन ही जब अपना, टीपू जैसों का क्या करना है ?
शान्ति सुरक्षा की ख़ातिर हर हिम्मतवर से डरना है !
पहनेगी हथकड़ी भवानी रानी लक्ष्मी झाँसी की !
(1948 में रचित)
जन्म-भूमि
मेरी जन्म-भूमि,
मेरी प्यारी जन्म-भूमि !
नीलम का आसमान है, सोने की धरा है,
चाँदी की हैं नदियाँ, पवन भी गीत भरा है,
मेरी जन्म-भूमि, मेरी प्यारी जन्म-भूमि !
ऊँचा है, सबसे ऊँचा जिसका भाल हिमाला,
पहले-पहल उतरा जहाँ अंबर से उजाला,
मेरी जन्म-भूमि, मेरी प्यारी जन्म-भूमि !
हर तरफ़ नवीन मौज, हर तरफ़ नवीन,
चरण चूमते हैं रूप मुग्ध सिन्धु तीन,
मेरी जन्म-भूमि, मेरी प्यारी जन्म-भूमि !
इज्ज़्त प तेरी माता,
यह जान भी निसार !
सौ बार भी मरेंगे हम,
जन्में जहाँ इकबार !
(1947 में रचित)
पूछ रहे हो क्या अभाव है
पूछ रहे हो क्या अभाव है
तन है केवल प्राण कहाँ है ?
डूबा-डूबा सा अन्तर है
यह बिखरी-सी भाव लहर है ,
अस्फुट मेरे स्वर हैं लेकिन
मेरे जीवन के गान कहाँ हैं ?
मेरी अभिलाषाएँ अनगिन
पूरी होंगी ? यही है कठिन
जो ख़ुद ही पूरी हो जाएँ
ऐसे ये अरमान कहाँ हैं ?
लाख परायों से परिचित है
मेल-मोहब्बत का अभिनय है,
जिनके बिन जग सूना सूना
मन के वे मेहमान कहाँ हैं ?
कल हमारा है
ग़म की बदली में चमकता एक सितारा है
आज अपना हो न हो पर कल हमारा है
धमकी ग़ैरों की नहीं अपना सहारा है
आज अपना हो न हो पर कल हमारा है
ग़र्दिशों से से हारकर ओ बैठने वाले
तुझको ख़बर क्या अपने पैरों में भी छाले हैं
पर नहीं रुकते कि मंज़िल ने पुकारा है
आज अपना हो न हो पर कल हमारा है
ये क़दम ऐसे जो सागर पाट देते हैं
ये वो धाराएँ हैं जो पर्वत काट देते हैं
स्वर्ग उन हाथों ने धरती पर उतारा है
आज अपना हो न हो पर कल हमारा है
सच है डूबा-सा है दिल जब तक अन्धेरा है
इस रात के उस पार लेकिन फिर सवेरा है
हर समन्दर का कहीं पर तो किनारा है
आज अपना हो न हो पर कल हमारा है
आओ साथ हमारे
आओ साथ हमारे, आओ, आओ साथ हमारे
हैं ये गीत तुम्हारे, आओ, गाओ साथ हमारे
आओ, आओ साथ हमारे
ऐ अन्धी गलियों में बसने वालो
हर पल जीवन की चक्की में पिसने वालो
आओ, आओ साथ हमारे
डर किसका अब गोली अपना रुख बदलेगी
दुश्मन को पहचान चुकी है बदला लेगी
राह ने देखो, टूट पड़ो, तूफ़ान बन जाओ
आओ, आओ साथ हमारे
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