निरंकारी-कविताएं-गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji
जग्ग जग्ग भोगी संसारी बहु रोगी होए,
भारत बीमार कीता आतम बीमारी ने ।
खह खह आपस दी पंडत मौलाने स्याणे,
सभी मसताने कीते तस्सब खुमारी ने ।
धरम दी जान विच नहीं रही जान जाणों,
वैद खुद रोगी कोई कीती नहीं कारी ने ।
धरम प्रचारन हित रोगां नूं टारन हित,
लीता अवतार गुर नानक निरंकारी ने ।
ठंढे सभ ता दिते, भांबड़ मचवा दिते,
साड़ कर सवाह दिते, दवैत चंग्यारी ने ।
दाते नूं छोड़ दिता, दात संग प्यार कीता,
ज़ातां करामातां विच लीन हंकारी ने ।
थाउं थां उपाशना दी वाशना च फस्सा जग,
एकता दी प्रीत वाली रीत जां विसारी ने ।
इको निरंकारी ही दा जाप जपावन हित,
लीता अवतार गुर नानक निरंकारी ने ।