धुरि मारे पूरै सतिगुरू-श्लोक -गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji
धुरि मारे पूरै सतिगुरू सेई हुणि सतिगुरि मारे ॥
जे मेलण नो बहुतेरा लोचीऐ न देई मिलण करतारे ॥
सतसंगति ढोई ना लहनि विचि संगति गुरि वीचारे ॥
कोई जाइ मिलै हुणि ओना नो तिसु मारे जमु जंदारे ॥
गुरि बाबै फिटके से फिटे गुरि अंगदि कीते कूड़िआरे ॥
गुरि तीजी पीड़ी वीचारिआ किआ हथि एना वेचारे ॥
गुरु चउथी पीड़ी टिकिआ तिनि निंदक दुसट सभि तारे ॥
कोई पुतु सिखु सेवा करे सतिगुरू की तिसु कारज सभि सवारे ॥
जो इछै सो फलु पाइसी पुतु धनु लखमी खड़ि मेले हरि निसतारे ॥
सभि निधान सतिगुरू विचि जिसु अंदरि हरि उर धारे ॥
सो पाए पूरा सतिगुरू जिसु लिखिआ लिखतु लिलारे ॥
जनु नानकु मागै धूड़ि तिन जो गुरसिख मित पिआरे ॥1॥307॥