दोही छंद (माँ का आशीष)-शुचिता अग्रवाल शुचिसंदीप -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Suchita Agarwal Suchisandeep
तम दूर रहे घर से सदा, उजियारा हो तेज।
जिस घर में बेटी जा रही, हों फूलों की सेज।।
घर मात-पिता का छोड़कर, अपनाओ ससुराल।
कुल मान सदा रखना बड़ा, जीवन हों खुशहाल।।
सुख सहज सकल तुमको मिले, लक्ष्मी रहे विराज।
हों सास-श्वसुर माँ-बाप सम, पिय हिय करना राज।।
मन भाव स्वच्छ पावन रहे, मृदु वाणी अनमोल।
जब क्रोध निकट आवें तभी, निज मन माँय टटोल।।
घृत दधि पय की नदियाँ बहे, दान धर्म हों रीत।
शुचि राम नाम धुन में रमे, जीवनमय संगीत।।
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दोही छंद विधान-
दोही, दोहे की ही प्रजाति का एक द्विपदी छंद है।
दोही अर्द्धसम मात्रिक छंद है। यह द्विपदी छंद है
जिसके प्रति पद में 26 मात्रा होती है। प्रत्येक पद
15, 11 मात्रा के दो यति खण्डों में विभाजित रहता है।
इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में १५-१५
मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में
११-११ मात्राएँ होती हैं।सम चरणों का अंत गुरु लघु
मात्रा से होना आवश्यक होता है।दूसरे और चौथे चरण
यानी सम चरणों का समतुकान्त होना आवश्यक है।
विषम चरण — कुल 15 मात्रा (मात्रा बाँट =
द्विकल + अठकल + द्विकल + लघु + द्विकल =
2 + 8 +2 +1 +2 = 15 मात्रा)
सम चरण — कुल 11 मात्रा (मात्रा बाँट =
अठकल + ताल यानी गुरु+लघु)
अठकल यानी 8 में दो चौकल (4+4) या 3-3-2 हो सकते हैं।
(चौकल और अठकल के नियम अनुपालनीय हैं।)