देह-शंख घोष -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankha Ghosh
देह के भीतर कुछ घट रहा है, डॉक्टर
मुझे ठीक-ठीक नहीं पता कि
उसका नाम किस तरह लिया जाता है
आइने के सामने बैठो
तो भारी हो उठती हैं आँखें
दर्द उठता है पेशियों के भीतर
भीतर से फूट रही है पीली रोशनी
लेकिन वह तो गोधूलि की आभा है
गोधूलि क्या ख़ून में दिखाई देती है?
ख़ून में दिखाई देती है गोधूलि?
तो क्या बेहतर है चले जाना?
देह के भीतर कुछ घट रहा है, डॉक्टर
मुझे उसका नाम नहीं पता।
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