त्रिलोकी छंद (शिव आराधना)-शुचिता अग्रवाल शुचिसंदीप -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Suchita Agarwal Suchisandeep
बोल-बोल बम बोल,सदा शिव को भजो,
कपट,क्रोध,मद,लोभ,चाल टेढ़ी तजो।
भाव भरो मन मांहि,सोम के नाम के,
मृत्य जगत के कृत्य,कहो किस काम के।
नील कंठ विषधार,सर्प शिव धारते,
नेत्र तीसरा खोल,दुष्ट संहारते।
अजर-अमर शिव नाम,जपत संकट कटे,
हो पुनीत सब काज,दोष विपदा हटे।
हवन कुंड यह देह,भाव समिधा जले,
नयन अश्रु की धार,बहाते ही चले।
सजल नयन के दीप,भक्ति से हों भरे,
भाव भरी यह प्रीत,सफल जीवन करे।
महादेव नटराज,दिव्य प्रभु रूप है,
सृष्टि सृजन के नाथ,जगत के भूप है।
वार मनुज सर्वस्व,परम शिव धाम पे,
तीन लोक के नाथ,एक शिव नाम पे।
*******
त्रिलोकी छंद विधान-
यह प्रति पद 21 मात्राओं का सम मात्रिक छंद
है जो 11,10 मात्राओं के दो यति खण्डों में विभाजित रहता है।
दो दो पद या चारों पद समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
अठकल + गुरु और लघु, त्रिकल + द्विकल + द्विकल
+ लघु और गुरु = 11, 10 = 21 मात्राएँ।
(अठकल दो चौकल या 3-3-2 हो सकता है, त्रिकल 21,
12, 111 हो सकता है तथा द्विकल 2 या 11 हो सकता है।)
*******
Comments are closed.