तेरे प्यार का ही जूनून है जो मैं पहाड़ तोड़ दूँ-विकास कुमार गिरि -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Vikas Kumar Giri
मैं अकेला थक सा जाता हूँ फिर जब तेरी कदमो की सुनता हूँ आहट,
जब याद आती है तेरी चाहत
इस जूनून में मैं हजार बार तोड़ दूँ
ये तेरे प्यार का ही जूनून है जो मैं पहाड़ तोड़ दूँ|
मैं कमजोर सा महसूस करने लगा हूँ फिर जब सुनता हूँ तेरी पाजेब की छन-छन,
तेरी चूड़ियों की खन-खन
ये मुझे देती है हिम्मत और ताकत
अब न सुने कोई प्रेमी अपने प्रेमिका की चीख पुकार
इस गुस्से में धरती क्या पूरा आसमान ख़ोद दूँ
ये तेरे प्यार का ही जूनून है जो मैं पहाड़ तोड़ दूँ|
“ऐ पहाड़ इतने सालों से कर रहा हूँ मेहनत अब तो तू दे दे रास्ता,
लोगो को आने जाने में होती है दिक्कत
कोई तो मेरी सुनता नहीं,
लेकिन अब तुझसे है इस मांझी की आखरी गुज़ारिश और तुझे है मेरी फाल्गुनिया का वास्ता
मैं अपनी जान को यही पर कर दुंगा कुर्बान
अब मेरी इज्जत तेरे हाथों में
कही मेरे प्यार का नाम हो जाए ना बदनाम.”
अब अकाल पड़े आंधी आए या तूफान
चाहे कफ़न में हो जाऊ मै दफ़न
अगर तू प्यार से नहीं माना तो मरते-मरते भी मैं तेरा सारा अकड़ तोड़ दूँ
ये तेरे प्यार का ही जूनून है जो मैं पहाड़ तोड़ दूँ|