तेरे कवन कवन गुण कहि कहि गावा-गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji
तेरे कवन कवन गुण कहि कहि गावा तू साहिब गुणी निधाना ॥
तुमरी महिमा बरनि न साकउ तूं ठाकुर ऊच भगवाना ॥१॥
मै हरि हरि नामु धर सोई ॥
जिउ भावै तिउ राखु मेरे साहिब मै तुझ बिनु अवरु न कोई ॥१॥ रहाउ ॥
मै ताणु दीबाणु तूहै मेरे सुआमी मै तुधु आगै अरदासि ॥
मै होरु थाउ नाही जिसु पहि करउ बेनंती मेरा दुखु सुखु तुझ ही पासि ॥२॥
विचे धरती विचे पाणी विचि कासट अगनि धरीजै ॥
बकरी सिंघु इकतै थाइ राखे मन हरि जपि भ्रमु भउ दूरि कीजै ॥३॥
हरि की वडिआई देखहु संतहु हरि निमाणिआ माणु देवाए ॥
जिउ धरती चरण तले ते ऊपरि आवै तिउ नानक साध जना जगतु आणि सभु पैरी पाए ॥੪॥੧॥੧੨॥੭੩੫॥