तेरा हार-हरिवंशराय बच्चन -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita By Harivansh Rai Bachchan Part 2

तेरा हार-हरिवंशराय बच्चन  -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita By  Harivansh Rai Bachchan  Part 2

वन्दी मित्र

(१)
जेल कोठरी के मैं द्वार
वन्दी ! तुझसे मिलने आया,
नतमस्तक मन में शर्माया,
मित्र ! मित्रता का मुझसे कुछ निभ न सका व्यवहार ।

(२)
कैसे आता तेरे साथ ?
देश भक्ति करने का अवसर,
बड़े भाग्य से मिले मित्रवर !
मेरी किस्मत में वह कैसे लिखते विधि के हाथ !

(३)
मित्र ! तुम्हारे मंगल भाल
अंकित है स्वतन्त्र नित रहना,
मेरे, बंदीगृह दुख सहना,
“मैं स्वतन्त्र ! तू वन्दी ! कैसे ?”-तेरा ठीक सवाल ।

(४)
मित्र ! नहीं क्या यह अविवाद ?
स्वतंत्र ही स्वतन्त्रता खोता,
वन्दी कभी न वन्दी होता,
अपने को वन्दी कर सकते जो स्वतन्त्र आजाद ।

(५)
कम न देश का मुझको प्यार ।
साथ तुम्हारा मैं भी देता,
अंग अंग यदि जकड़ न लेता,
मेरा, प्यारे मित्र ! जगत का काला कारागार ।

 कोयल

1
अहे, कोयल की पहली कूक !
अचानक उसका पड़ना बोल,
हृदय में मधुरस देना घोल,
श्रवणों का उत्सुक होना, बनाना जिह्वा का मूक !

2
कूक, कोयल, या कोई मंत्र,
फूँक जो तू आमोद-प्रमोद,
भरेगी वसुंधरा की गोद ?
काया-कल्प-क्रिया करने का ज्ञात तुझे क्या तंत्र ?

3
बदल अब प्रकृति पुराना ठाट
करेगी नया-नया श्रृंगार,
सजाकर निज तन विविध प्रकार,
देखेगी ऋतुपति-प्रियतम के शुभागमन की बाट।

4
करेगा आकर मंद समीर
बाल-पल्लव-अधरों से बात,
ढँकेंगी तरुवर गण के गात
नई पत्तियाँ पहना उनको हरी सुकोमल चीर।

5
वसंती, पीले, नील, लाले,
बैंगनी आदि रंग के फूल,
फूलकर गुच्छ-गुच्छ में झूल,
झूमेंगे तरुवर शाखा में वायु-हिंडोले डाल।

6
मक्खियाँ कृपणा होंगी मग्न,
माँग सुमनों से रस का दान,
सुना उनको निज गुन-गुन गान,
मधु-संचय करने में होंगी तन-मन से संलग्न !

7
नयन खोले सर कमल समान,
बनी-वन का देखेंगे रूप—
युगल जोड़ी सुछवि अनूप;
उन कंजों पर होंगे भ्रमरों के नर्तन गुंजान।

8
बहेगा सरिता में जल श्वेत,
समुज्ज्वल दर्पण के अनुरूप,
देखकर जिसमें अपना रूप,
पीत कुसुम की चादर ओढ़ेंगे सरसों के खेत।

9
कुसुम-दल से पराग को छीन,
चुरा खिलती कलियों की गंध,
कराएगा उनका गठबंध,
पवन-पुरोहित गंध सूरज से रज सुगंध से भीन।

10
फिरेंगे पशु जोड़े ले संग,
संग अज-शावक, बाल-कुरंग,
फड़कते हैं जिनके प्रत्यंग,
पर्वत की चट्टानों पर कूदेंगे भरे उमंग।

11
पक्षियों के सुन राग-कलाप—
प्राकृतिक नाद, ग्राम सुर, ताल,
शुष्क पड़ जाएँगे तत्काल,
गंधर्वों के वाद्य-यंत्र किन्नर के मधुर अलाप।

12
इन्द्र अपना इन्द्रासन त्याग,
अखाड़े अपने करके बंद,
परम उत्सुक-मन दौड़ अमंद,
खोलेगा सुनने को नंदन-द्वार भूमि का राग !

13
करेगी मत्‍त मयूरी नृत्य
अन्य विहगों का सुनकर गान,
देख यह सुरपति लेगा मान,
परियों के नर्तन हैं केवल आडंबर के कृत्य !

14
अहे, फिर ‘कुऊ’ पूर्ण-आवेश !
सुनाकर तू ऋतुपति-संदेश,
लगी दिखलाने उसका वेश,
क्षणिक कल्पने मुझे घमाए तूने कितने देश !

15
कोकिले, पर यह तेरा राग
हमारे नग्न-बुभुक्षित देश
के लिए लाया क्या संदेश ?
साथ प्रकृति के बदलेगा इस दीन देश का भाग ?

चुम्बन

(१)
ऐ छोटे विहग सुकुमार !
तेरे कोमल चंचु अधर से
निकल रहे स्नेहाप्लुत स्वर से
लगता, कोई करे किसी को निर्भय चुम्बन प्यार ।

(२)
किसको करते चुम्बन प्यार ?
क्या मानव आंखों से देखी
गई ना बुद्धि-चक्षु अवरेखी
उसको ऊषा काल बहे जो शीतल मन्द बयार ?

(३)
या सुमनों में शिशु कुमार,
जो सुगंध का अब तक सोया,
रजनी के स्वप्नों में खोया,
उसे जगाते धीमे धीमे कर के चुम्बन-प्यार ?

(४)
या तुम शशि किरणों के तार
से जो चुम्बन कर
और सितारों का प्रकाश वर
चूमचूम सस्नेह विदा करते हो, अन्तिम बार ?

(५)
या तुम बाल सूर्य के हाथ,
स्वर्ण रंग में गए रंगाए,
गए तुम्हारी ओर बढ़ाए,
करते हो आभूषित अपने रजत-चुम्बनों साथ ?

(६)
या तुम उस चुम्बन का, तात !
पाठ याद करते उठ भोर,
जिसे लिटा अञ्चल पर छोर
अपने तुमको, मातृ विहगिनि ने सिखलाया रात !

(७)
या तुम वह चुम्बन प्रति भोर
उठ कर याद किया करते हो,
(मुझे बताते क्यों डरते हो?)
जिससे तुम्हें किसी ने भेजा जीवन के इस ओर ?

(८)
तब की तो है मुझे न याद,
पर अतीत जीवन के चुम्बन
कितने चमका करें हृद्गगन !
जिनकी मूकस्मृति मेरे मन भरती मधुर विषाद!

(९)
यदि न जगत के धंधे फन्द
होते, मानस-गगन घूमता,
प्रति चुम्बन को पुन: चूमता,
सदा बना मैं तुमसा रहता एक विहंग स्वच्छन्द !

 दुख में

( १ )
“पड़ी दुखों की तुझ पर मार !
दुखों में सुख भरा जान तू,
रो रो कर मुख न कर म्लान तू,
हँस, हँस, हलका हो जाएगा तेरे दुख का भार ।

( २ )
निज बल पर जिनको अभिमान
संकट में साहस दिखलाते,
दुखों को हैं दूर हटाते
दुख पड़ने पर जो हँसते हैं वही वीर बलवान” ।

( ३ )
“मिले मुझे दुख लाखों बार,
पर, दुख में सुख सार समाया-
व्यंग, समझ मैं कभी न पाया ।
सुख में हंसूं, दुखों में रोऊँ-सीधा सा व्यवहार ।

( ४ )
कोमल से कोमल भी शूल
जब जब है तन मेरे गड़ता,
बच्चों सा मैं हूं रो पड़ता,
कांटों को मैं कभी न अब तक समझ सका हूँ फूल ।

( ५ )
एक नियम जीवन में पाल
रहा सदा से हूँ मैं अविचल,
कोई कहे बली या निर्बल,
उन्हें चुभा रहने देता हूँ, देता नहीं निकाल !”

 दुखों का स्वागत

(१)
नदियाँ नीर भरें जलनिधि में
जो जल राशि अघाए ।
शुष्क, जल रहित मरुस्थली को
दिनकर और तपाए ।

( २ )
हृष्ट-पुष्ट नित स्वस्थ रहे, कृश
कौण रुग्न हो जाए,
लक्ष्मी के मन्दिर में स्वागत
धनी महाजन पाए ।

( ३ )
अंधकार अंधों को मिलता,
उसे नयन जो पाए
ज्योति मिले, यह नियम जगत का
सम समान को धाए ।

( ४ )
प्यार पास जाए प्यारों के,
सुख सुखियों पर छाए,
आशिष आशिष वानो पर, मुझ
दुखिया पर दुख आए !

आदर्श प्रेम

1
प्यार किसी को करना, लेकिन-
कह कर उसे बताना क्या ?
अपने को अर्पण करना पर-
औरों को अपनाना क्या ?

2
गुण का ग्राहक बनना, लेकिन-
गा कर उसे सुनाना क्या ?
मन के कल्पित भावों से
औरों को भ्रम में लाना क्या ?

3
ले लेना सुगंध सुमनों की,
तोड़ उन्हे मुरझाना क्या ?
प्रेम हार पहनाना लेकिन-
प्रेम पाश फैलाना क्या ?

4
त्याग-अंक में पलें प्रेम शिशु
उनमें स्वार्थ बताना क्या ?
दे कर हृदय हृदय पाने की
आशा व्यर्थ लगाना क्या ?