तू नहीं कहेगा ?- चक्रांत शिला अज्ञेय- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय”-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Sachchidananda Hirananda Vatsyayan Agyeya,

तू नहीं कहेगा ?- चक्रांत शिला अज्ञेय- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय”-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Sachchidananda Hirananda Vatsyayan Agyeya,

तू नहीं कहेगा?
मैं फिर भी सुन ही लूँगा ।

किरण भोर की पहली भोलेपन से बतलावेगी,
झरना शिशु-सा अनजान उसे दुहरावेगा,
घोंघा गीली पीली रेती पर धीरे-धीरे आँकेगा,
पत्तों का मर्मर कनबतियों में जहाँ-तहाँ फ़ैलावेगा,
पंछी की तीखी कूक फरहरे-मढ़े शल्य-सी आसमान पर
टाँकेगी,
फिर दिन सहसा खुल कर उस को सब पर प्रकटावेगा,
निर्मम प्रकाश से सब कुछ पर सुलझा सब कुछ लिख जावेगा ।

मैं गुन लूँगा ।
तू नहीं कहेगा?
आस्था है,
नहीं अनमना हूँगा तब-
मैं सुन लूँगा ।