तू कि अंजान है इस शहर के अंदाज़ समझ-दर्द आशोब -अहमद फ़राज़-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ahmed Faraz,
तू कि अनजान है इस शहर के आदाब समझ
फूल रोए तो उसे ख़ंद-ए-शादाब समझ
कहीं आ जाए मयस्सर तो मुक़द्दर तेरा
वरना आसूदगी-ए-दहर को नायाब समझ
हसरते-गिरिया में जो आग है अश्कों में नहीं
ख़ुश्क आँखों को मेरी चश्मा-ए-बेआब समझ
मौजे-दरिया ही को आवार-ए-सदशौक़ न कह
रेगे-साहिल को भी लबे-तिश्न-ए-सैलाब समझ
ये भी वा है किसी मानूस किरन की ख़ातिर
रोज़ने-दर को भी इक दीदा-ए-बेख़्वाब समझ
अब किसे साहिले-उम्मीद से तकता है ‘फ़राज़’
वो जो इक किश्ती-ए-दिल थी उसे ग़र्क़ाब समझ