तुम हो मेरी अभिव्यक्ति सुहानी-शंकर लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankar Lal Dwivedi
मुझको तो ऐसा लगता है, तुममें-मुझमें भेद न कोई।
जैसे-मैं हूँ भाव, और तुम हो मेरी अभिव्यक्ति सुहानी।।
मेरी अमर प्रेरणा! तुमने साधी क्यों इतनी निठुराई।
व्याकुल नयन-नीर की गरिमा, भुला रही अपने संयम को।।
तुमने कर गठबंधन, मुझको भटका दिया विजन राहों पर-
जहाँ मुझे साहस तो क्या, धीरज भी बँधा नहीं पल भर को।।
लेकिन मुझे भुलावा मत दो, हो कर मेरी अमर-कहानी।
जैसे-मैं हूँ भाव, और तुम हो मेरी अभिव्यक्ति सुहानी।।
तुमने लिखा कि-‘मेरे अपने जीवन की थीं कुछ मजबूरी’।
अधरों की मुस्कान! भला फिर मुझको अपनाया ही क्यों था?
प्राणों की व्याकुलता! तुमने, मेरा चित्र बनाया ही क्यों?
स्नेह-दीप से ज्योतित कर फिर, मुझको भला दिखाया क्यों था?
तुमसे युग-युग का बन्धन है, कैसे कह दूँ तुम्हें बिरानी?
जैसे-मैं हूँ भाव, और तुम हो मेरी अभिव्यक्ति सुहानी।।
माना अनायास हो आईं तुमको कई शिकायत मुझसे।
लेकिन अपनों से रूठापन, कितने दिनों चला करता है।।
यह मन मधुर-मदिर-भोली उन प्रेम-तरंगों का आलय है-
जिन में किसी तरुण का जीवन, दे कर प्राण पला करता है।।
अमिट रहेगी मनःसिन्धु पर लहरें, क्योंकि यही है पानी।
जैसे-मैं हूँ भाव, और तुम हो मेरी अभिव्यक्ति सुहानी।।
-१ दिसंबर, १९६२
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