तुझ से मिल कर भी कुछ ख़फ़ा हैं हम-दर्द आशोब -अहमद फ़राज़-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ahmed Faraz,
तुझ से मिल कर भी कुछ ख़फ़ा हैं हम
बेमुरव्वत नहीं तो क्या हैं हम
हम ग़मे-क़ारवाँ में बैठे थे
लोग समझे शिकस्ता-पा हैं हम
इस तरह से हमें रक़ीब मिले
जैसे मुद्दत के आश्ना हैं हम
राख हैं हम अगर ये आग बुझी
जुज़ ग़मे-दोस्त और क्या हैं हम
ख़ुद को सुनते हैं इस तरह जैसे
वक़्त की आख़िरी सदा हैं हम
क्यों ज़माने को दें ‘फ़राज़’ इल्ज़ाम
वो नहीं हैं तो बे-वफ़ा हैं हम