तरनी उतरि गई लहरनि में-बरसि पिया के देस-शंकर लाल द्विवेदी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankar Lal Dwivedi
कर में, कसि कैं गहि पतबार, तरनी उतरि गई लहरनि में।
नीलौ अम्बरु, कारौ पानी,
इकिलौ जानि हबा बौरानी।
छायौ घटा-टोप अँधियार, बिजुरी कौंधन लगी, गगन में।
तरनी उतरि गई लहरनि में।।
बढ़ि चलि, कहा लहरि की काया,
करिहै पुरसारथ तैं माया।
मनिरवा! भँमर जाल संसार, डर गयौ तौ डूबैगौ छिन में।
तरनी उतरि गई लहरनि में।।
इतनीं निहचै जानि खिबैया,
जौ लगि धीरज, तौ लगि नैया।
उतमैं चढ्यौ धार पै ज्वार, इतमैं पाहन बंध्यौ पगनि में।
तरनी उतरि गई लहरनि में।।
तिनुका ह्वै, तिरिबे की बारी-
मति करि मन पहार सौ भारी।
इनकौ, सागरु अगम अपार, भरियो मति अँसुवा अँखियनि में।
तरनी उतरि गई लहरनि में।।
आकाशवाणी दिल्ली से ‘ब्रज-माधुरी’ कार्यक्रम के
अंतर्गत १२ जून, १९७० को प्रसारित