तपा न होवै अंद्रहु लोभी-श्लोक -गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji

तपा न होवै अंद्रहु लोभी-श्लोक -गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji

तपा न होवै अंद्रहु लोभी नित माइआ नो फिरै जजमालिआ ॥
अगो दे सदिआ सतै दी भिखिआ लए नाही पिछो दे पछुताइ कै आणि तपै पुतु विचि बहालिआ ॥
पंच लोग सभि हसण लगे तपा लोभि लहरि है गालिआ ॥
जिथै थोड़ा धनु वेखै तिथै तपा भिटै नाही धनि बहुतै डिठै तपै धरमु हारिआ ॥
भाई एहु तपा न होवी बगुला है बहि साध जना वीचारिआ ॥
सत पुरख की तपा निंदा करै संसारै की उसतती विचि होवै एतु दोखै तपा दयि मारिआ ॥
महा पुरखां की निंदा का वेखु जि तपे नो फलु लगा सभु गइआ तपे का घालिआ ॥
बाहरि बहै पंचा विचि तपा सदाए ॥
अंदरि बहै तपा पाप कमाए ॥
हरि अंदरला पापु पंचा नो उघा करि वेखालिआ ॥
धरम राइ जमकंकरा नो आखि छडिआ एसु तपे नो तिथै खड़ि पाइहु जिथै महा महां हतिआरिआ ॥
फिरि एसु तपे दै मुहि कोई लगहु नाही एहु सतिगुरि है फिटकारिआ ॥
हरि कै दरि वरतिआ सु नानकि आखि सुणाइआ ॥
सो बूझै जु दयि सवारिआ ॥1॥315॥