तनु जलि बलि माटी भइआ मनु माइआ मोहि मनूरु-शब्द -गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji
तनु जलि बलि माटी भइआ मनु माइआ मोहि मनूरु ॥
अउगण फिरि लागू भए कूरि वजावै तूरु ॥
बिनु सबदै भरमाईऐ दुबिधा डोबे पूरु ॥१॥
मन रे सबदि तरहु चितु लाइ ॥
जिनि गुरमुखि नामु न बूझिआ मरि जनमै आवै जाइ ॥१॥ रहाउ ॥
तनु सूचा सो आखीऐ जिसु महि साचा नाउ ॥
भै सचि राती देहुरी जिहवा सचु सुआउ ॥
सची नदरि निहालीऐ बहुड़ि न पावै ताउ ॥२॥
साचे ते पवना भइआ पवनै ते जलु होइ ॥
जल ते त्रिभवणु साजिआ घटि घटि जोति समोइ ॥
निरमलु मैला ना थीऐ सबदि रते पति होइ ॥३॥
इहु मनु साचि संतोखिआ नदरि करे तिसु माहि ॥
पंच भूत सचि भै रते जोति सची मन माहि ॥
नानक अउगण वीसरे गुरि राखे पति ताहि ॥४॥१५॥(19)॥