तंग आ जाते हैं दरिया जो कुहिस्तानों में-ग़ज़लें -अहमद नदीम क़ासमी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ahmad Nadeem Qasmi,
तंग आ जाते हैं दरिया जो कुहिस्तानों में
साँस लेने को निकल जाते हैं मैदानों में
ख़ैर हो दश्त-ए-नवर्दान-ए-मोहब्बत की अब
शहर बस्ते चले जाते हैं बयाबानों में
अब तो ले लेता है बातिन से यही काम जुनूँ
नज़र आते नहीं अब चाक गरेबानों में
माल चोरी का जो तक़्सीम किया चोरों ने
निस्फ़ तो बट गया बस्ती के निगहबानों में
कौन तारीख़ के इस सिद्क़ को झुटलाएगा
ख़ैर-ओ-शर दोनों मुक़य्यद रहे ज़िंदानों में
जुस्तुजू का कोई अंजाम तो ज़ाहिर हो ‘नदीम’
इक मुसलमाँ तो नज़र आए मुसलमानों में