झूम रही बालियां -खिड़कियाँ -अशोक चक्रधर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ashok Chakradhar,

झूम रही बालियां -खिड़कियाँ -अशोक चक्रधर-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ashok Chakradhar,

रे देखो खेतों में झूम रहीं बालियां।
फल और फूलों से,
पटरी के झूलों से
खाय हिचकोले मगन भईं डालियां।
रे देखो खेतों में झूम रहीं बालियां।

ऋतु है बसंती ये
बड़ी रसवंती ये।
कोयलिया कूक रही,
जादू सा फूंक रही।
सखियां हैं चुनमुन है,
पायलों की रुनझुन है।
मस्ती में जवानी है,
अदा मस्तानी है।
चुनरी है गोटे हैं,
झूला है, झोटे हैं।
घंटी बजी ख़तरों की,
टोली आई भंवरों की।
धूल नहीं फांकेंगे,
बगिया में झांकेंगे।
बगिया में तितली है,
अरे ये तो इकली है।
नहीं नहीं और भी हैं,
अमियां पे बौर भी हैं।
तितली के नख़रे हैं,
भंवरे ये अखरे हैं।
भंवरे ने मुंह खोला,
सखियों से यों बोला—
हम भए जीजा कि तुम भईं सालियां।
रे देखो खेतों में झूम रहीं बालियां।

बगिया में रास रचा,
बड़ा हड़कम्प मचा।
सुध-बुध भूला जी,
थम गया झूला जी।
कैसे घुस आए हो,
किसने बुलाए हो?
हम नहीं मानें जी,
तुम्हें नहीं जानें जी!
काले हो कलूटे हो,
तुम सब झूठे हो।
मुंह धो के आ जाओ,
तितली को पा जाओ।
भंवरों की टोली ये,
सखियों से बोली ये—
कान्हा भी तो कारे थे,
मुरलिया वारे थे।
हम न अकेले हैं,
ख़ूब खाए-खेले हैं।
मुरली बजाएंगे,
सबको ले जाएंगे।
सब हैं तुम्हारे जी!
शरम के मारे जी,
सखियों के गालों पर छा गईं लालियां।
रे देखो खेतों में झूम रहीं बालियां।

रे देखो खेतों में झूम रहीं बालियां।
फल और फूलों से,
पटरी से झूलों से
खाय हिचकोले मगन भईं डालियां।
रे देखो खेतों में झूम रहीं बालियां।