जो उलझ कर रह गई फाइलों के जाल में- धरती की सतह पर -अदम गोंडवी- Adam Gondvi-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita,

जो उलझ कर रह गई फाइलों के जाल में- धरती की सतह पर -अदम गोंडवी- Adam Gondvi-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita,

जो उलझ कर रह गई फाइलों के जाल में
गांव तक वो रोशनी आयेगी कितने साल में

बूढ़ा बरगद साक्षी है किस तरह से खो गई
रमसुधी की झोपड़ी सरपंच की चौपाल में

खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए
हमको पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में

जिसकी क़ीमत कुछ न हो इस भीड़ के माहौल में
ऐसा सिक्का ढालिए मत जिस्म की टकसाल में