जुड़ि जुड़ि विछुड़े विछुड़ि जुड़े-सलोक-गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji

जुड़ि जुड़ि विछुड़े विछुड़ि जुड़े-सलोक-गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji

जुड़ि जुड़ि विछुड़े विछुड़ि जुड़े ॥
जीवि जीवि मुए मुए जीवे ॥
केतिआ के बाप केतिआ के बेटे केते गुर चेले हूए ॥
आगै पाछै गणत न आवै किआ जाती किआ हुणि हूए ॥
सभु करणा किरतु करि लिखीऐ करि करि करता करे करे ॥
मनमुखि मरीऐ गुरमुखि तरीऐ नानक नदरी नदरि करे ॥२॥(1238)॥

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