जीवन।-राही चल : अनिल मिश्र प्रहरी (Anil Mishra Prahari)| Hindi Poem | Hindi Kavita,
ज्ञात नहीं बहता जाता है जीवन किस धारा में
तिमिर अगम या फिर प्रभात की निर्झर उजियारा में,
कहीं बदल जाती धारा, सम्पूर्ण वेग से चलता
नये रूप में, नई दिशा में जीवन पल-पल ढलता।
जैसे हों विस्तृत सागर की उठती – गिरती लहरें
अनायास ही चलतीं, किसको पता कहाँ कब ठहरें,
भावी पल का दामन में शत भेद छुपाने वाला
और कभी बन जलद-पुंज अम्बर में छाने वाला।
देता है परिताप जनों को क्षुधा – ज्वाल धधकाके
भरता भी झोली रत्नों से घर को स्वर्ग बनाके,
आशा और निराशा की बनतीं-मिटतीं तस्वीरें
उड़ता है उन्मुक्त गगन तो पग बाँधे जंजीरें।
कभी दिलाता हार, कभी जीवन है जीत-सफलता
कभी हरित कर सूखी डाली जीवन ही है फलता,
इस क्षणभंगुर जीवन की मत पूछो क्या परिभाषा
तिनका – तिनका बिखरा हो पर टूटी न हो आशा।