जीअहु मैले बाहरहु निरमल-शब्द-गुरू अमर दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Amar Das Ji
जीअहु मैले बाहरहु निरमल ॥
बाहरहु निरमल जीअहु त मैले तिनी जनमु जूऐ हारिआ ॥
एह तिसना वडा रोगु लगा मरणु मनहु विसारिआ ॥
वेदा महि नामु उतमु सो सुणहि नाही फिरहि जिउ बेतालिआ ॥
कहै नानकु जिन सचु तजिआ कूड़े लागे तिनी जनमु जूऐ हारिआ ॥੧੯॥੯੧੯॥