जिन कउ आपि देइ वडिआई-श्लोक -गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji

जिन कउ आपि देइ वडिआई-श्लोक -गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji

जिन कउ आपि देइ वडिआई जगतु भी आपे आणि तिन कउ पैरी पाए ॥
डरीऐ तां जे किछु आप दू कीचै सभु करता आपणी कला वधाए ॥
देखहु भाई एहु अखाड़ा हरि प्रीतम सचे का जिनि आपणै जोरि सभि आणि निवाए ॥
आपणिआ भगता की रख करे हरि सुआमी निंदका दुसटा के मुह काले कराए ॥
सतिगुर की वडिआई नित चड़ै सवाई हरि कीरति भगति नित आपि कराए ॥
अनदिनु नामु जपहु गुरसिखहु हरि करता सतिगुरु घरी वसाए ॥
सतिगुर की बाणी सति सति करि जाणहु गुरसिखहु हरि करता आपि मुहहु कढाए ॥
गुरसिखा के मुह उजले करे हरि पिआरा गुर का जैकारु संसारि सभतु कराए ॥
जनु नानकु हरि का दासु है हरि दासन की हरि पैज रखाए ॥2॥308॥