जिना अंदरि उमरथल-श्लोक -गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji
जिना अंदरि उमरथल सेई जाणनि सूलीआ ॥
हरि जाणहि सेई बिरहु हउ तिन विटहु सद घुमि घोलीआ ॥
हरि मेलहु सजणु पुरखु मेरा सिरु तिन विटहु तल रोलीआ ॥
जो सिख गुर कार कमावहि हउ गुलमु तिना का गोलीआ ॥
हरि रंगि चलूलै जो रते तिन भिनी हरि रंगि चोलीआ ॥
करि किरपा नानक मेलि गुर पहि सिरु वेचिआ मोलीआ ॥1॥311॥