जाति का गरबु न करीअहु कोई-शब्द-गुरू अमर दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Amar Das Ji

जाति का गरबु न करीअहु कोई-शब्द-गुरू अमर दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Amar Das Ji

जाति का गरबु न करीअहु कोई ॥
ब्रहमु बिंदे सो ब्राहमणु होई ॥१॥
जाति का गरबु न करि मूरख गवारा ॥
इसु गरब ते चलहि बहुतु विकारा ॥१॥ रहाउ ॥
चारे वरन आखै सभु कोई ॥
ब्रहमु बिंद ते सभ ओपति होई ॥२॥
माटी एक सगल संसारा ॥
बहु बिधि भांडे घड़ै कुम्हारा ॥३॥
पंच ततु मिलि देही का आकारा ॥
घटि वधि को करै बीचारा ॥४॥
कहतु नानक इहु जीउ करम बंधु होई ॥
बिनु सतिगुर भेटे मुकति न होई ॥੫॥੧॥੧੧੨੭-੧੧੨੮॥

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