ज़ेरे-लब-दर्द आशोब -अहमद फ़राज़-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ahmed Faraz,

ज़ेरे-लब-दर्द आशोब -अहमद फ़राज़-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ahmed Faraz,

किस बोझ से जिस्म टूटता है
इतना तो कड़ा सफ़र नहीं था
दो चार क़दम का फ़ासला क्या
फिर राह से बेख़बर नहीं था
लेकिन यह थकन यह लड़खड़ाहट
ये हाल तो उम्र-भर नहीं था

आग़ाज़े-सफ़र में जब चले थे
कब हमने कोई दिया जलाया
कब अहदे-वफ़ा की बात की थी
कब हमने कोई फ़रेब खाया
वो शाम,वो चाँदनी, वो ख़ुश्बू
मंज़िल का किसे ख़याल आया

तू मह्वे-सुख़न थी मुझसे लेकिन
मैं सोच के जाल बुन रहा था
मेरे लिए ज़िन्दगी तड़प थी
तेरे लिए ग़म भी क़हक़हा था
अब तुझसे बिछुड़ के सोचता हूँ
कुछ तूने कहा था क्या कहा था