ज़ीस्त आज़ार हुई जाती है-ग़ज़लें -अहमद नदीम क़ासमी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ahmad Nadeem Qasmi,
ज़ीस्त आज़ार हुई जाती है ।
साँस तलवार हुई जाती है
जिस्म बेकार हुआ जाता है,
रूह बेदार हुई जाती है
कान से दिल में उतरती नहीं बात,
और गुफ़्तार हुई जाती है
ढल के निकली है हक़ीक़त जब से,
कुछ पुर-असरार हुई जाती है
अब तो हर ज़ख़्म की मुँहबन्द कली,
लब-ए-इज़हार हुई जाती है
फूल ही फूल हैं हर सिम्त ‘नदीम’,
राह दुश्वार हुई जाती है
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