जह बैसालहि तह बैसा सुआमी-शब्द-गुरू अमर दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Amar Das Ji

जह बैसालहि तह बैसा सुआमी-शब्द-गुरू अमर दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Amar Das Ji

जह बैसालहि तह बैसा सुआमी जह भेजहि तह जावा ॥
सभ नगरी महि एको राजा सभे पवितु हहि थावा ॥१॥
बाबा देहि वसा सच गावा ॥
जा ते सहजे सहजि समावा ॥१॥ रहाउ ॥
बुरा भला किछु आपस ते जानिआ एई सगल विकारा ॥
इहु फुरमाइआ खसम का होआ वरतै इहु संसारा ॥२॥
इंद्री धातु सबल कहीअत है इंद्री किस ते होई ॥
आपे खेल करै सभि करता ऐसा बूझै कोई ॥३॥
गुर परसादी एक लिव लागी दुबिधा तदे बिनासी ॥
जो तिसु भाणा सो सति करि मानिआ काटी जम की फासी ॥४॥
भणति नानकु लेखा मागै कवना जा चूका मनि अभिमाना ॥
तासु तासु धरम राइ जपतु है पए सचे की सरना ॥੫॥੧॥੯੯੩॥