चिड़िया ने ही कहा- आँगन के पार द्वार अज्ञेय- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय”-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Sachchidananda Hirananda Vatsyayan Agyeya,

चिड़िया ने ही कहा- आँगन के पार द्वार अज्ञेय- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय”-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Sachchidananda Hirananda Vatsyayan Agyeya,

मैंने कहा
कि ‘चिड़िया’:
मैं देखता रहा-
चिड़िया चिड़िया ही रही ।
फिर-फिर देखा
फिर-फिर बोला,
‘चिड़िया’ ।
चिड़िया चिड़िया ही रही ।

फिर-जाने कब-
मैंने देखा नहीं:
भूल गया था मैं क्षण-भर को तकना!-
मैं कुछ बोला नहीं-
खो गई थी क्षण-भर को स्तब्ध चकित-सी वाणी,
शब्द गए थे बिखर, फटी छीमी से जैसे
फट कर खो जाते हैं बीज
अनयना रवहीना धरती में
होने को अंकुरित अजाने-
तब-जाने कब-
चिड़िया ने ही कहा
कि ‘चिड़िया’ ।
चिड़िया ने ही देखा
वह चिड़िया थी ।
चिड़िया
चिड़िया नहीं रही है तब से:
मैं भी नहीं रहा मैं ।

कवि हूँ!
कहना सब सुनना है,स्वर केवल सन्नाटा ।

कहीं बड़े गहरे में
सभी स्वैर हैं नियम,
सभी सर्जन केवल
आँचल पसार कर लेना ।

देहरादून, 18 अगस्त, 1959