गूजरी-शब्द -भक्त त्रिलोचन जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita By Bhakt Trilochan Ji

गूजरी-शब्द -भक्त त्रिलोचन जी -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita By Bhakt Trilochan Ji

अंति कालि जो लछमी सिमरै ऐसी चिंता महि जे मरै ॥
सरप जोनि वलि वलि अउतरै ॥१॥
अरी बाई गोबिद नामु मति बीसरै ॥ रहाउ ॥
अंति कालि जो इसत्री सिमरै ऐसी चिंता महि जे मरै ॥
बेसवा जोनि वलि वलि अउतरै ॥२॥
अंति कालि जो लड़िके सिमरै ऐसी चिंता महि जे मरै ॥
सूकर जोनि वलि वलि अउतरै ॥३॥
अंति कालि जो मंदर सिमरै ऐसी चिंता महि जे मरै ॥
प्रेत जोनि वलि वलि अउतरै ॥४॥
अंति कालि नाराइणु सिमरै ऐसी चिंता महि जे मरै ॥
बदति तिलोचनु ते नर मुकता पीत्मबरु वा के रिदै बसै ॥५॥२॥५२६॥